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29 May 2023 · 1 min read

छद्म शत्रु

बढ़ते जाते खौफ के साए से
कहर अंधेरों केबढ़ने लगे।
घर-घर में पसरे सन्नाटों से,
मर्म मौन का समझने लगे।
अपनों को खोने के डर से,
पराए भी अपने लगने लगे।
एकाकी होते मन को फिर से,
सांत्वना कण बहलाने लगे।
हर पल का जीवन जीने से,
अनगिन अनुभव पलने लगे।
जीवन की वेदी पर कसने से,
संघर्ष भी तुच्छ दिखने लगे।
जीवन नहीं शैली बदलने से,
हम छद्म शत्रु को हराने लगे।
असफल हुए जब रोकने से,
दृढ़ इच्छाशक्ति से भगाने लगे।
हम है तो जहान होगा हमसे,
अस्तित्व प्रश्न के उठने लगे।
दुख के ये बादल घनेरे थे,
संकल्प दे ख अब ‌ छंटनेलगे।

Language: Hindi
82 Views
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