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16 Aug 2024 · 1 min read

चोट दिल पर ही खाई है

चोट दिल पर ही खाई है
********************

प्रेम में ही गहराई है,
तंग करती तन्हाई है।

साथ देती आई सदा,
खौफ़ में तो परछाई है।

जान कर पथ आते नहीं,
सरहदें भी हटवाई है।

गीत – गजलें गाते नहीं,
हो गई उनसे रुसवाई है।

बात कोई सुनता नहीं,
आज फिर से सुनवाई है।

साँस आती-जाती नहीं,
शीत चलती पुरवाई है।

जान मुश्किल में है बड़ी
राह में मिलते हरजाई हैँ।

पास मनसीरत था खड़ा,
चोट दिल पर ही खाई है।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)

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