चुप्पी तोड़ें
चुप्पी तोड़ें
आतंकियों का धर्म नहीं होता,
आईये इनके विरूद्ध आवाज उठायें,
हमारी चुप्पी नासूर बन गई है,
आएं चुप्पी तोड़ें देश हित में कुछ काम आएं।
कसाब, अफजल और दाउद के धर्म नहीं हैं,
यह बात सबको बतलाएं,
कट्टरपंथ को चोट करने को,
अपने बच्चों को यह ज्ञान सिखलाएं।
बहिष्कार करो उन सबका,
जो द्वेष करने को सिखाते हैं,
प्रश्रय दें उन तत्वों को हम,
जो प्रेम की धारा बहाते हैं।
इंसानों को खेत करना,
क्या यह जिहाद है?
धर्म के नाम पर बहकाकर,
करवा रवा फसाद है।
कश्मीर धधक रही है,
आतंकियों के मरने पर,
अमन चैनियों के विरोधियों ने,
बैठा लिया है उन्हें सर पर।
कितने हमरे खून बहे,
शांति को मोमबत्तियां चला दिये हम,
खूनी खेल का तांडव अब तक रूकी नहीं है,
यह दर्द कब तक सहते रहेगें हम।
द्वेष की बातें दफन करके,
एक जुट हो जाएं हम,
ललकार दें उन्हें, जो उड़ा रहे इंसानों को,
लेकर हाथ में गोले-बम।
सत्ता सुख के कारण कुछ ने,
फैला दिया समाज में है जहर,
होश नहीं खोयें अब हम,
रोकने चलें आतंकियों के डगर।
—— मनहरण,