*चुनाव के मौसम में नाराज फूफा (हास्य-व्यंग्य )*

*चुनाव के मौसम में नाराज फूफा (हास्य-व्यंग्य )*
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इधर चुनाव का मौसम आया ,उधर फूफा नाराज होने लगे । एक शादी में दूल्हे के मुश्किल से दो-चार फूफा होते हैं । उनको मनाने में जो पसीने छूटते हैं ,वह तो दूल्हे का बाप ही जानता है । फूफा भी समझते हैं कि इस समय नाराज हो गए तो मनाने के लिए ससुराल से चार जनों का प्रतिनिधिमंडल जरूर आएगा । फिर उसके सामने मांगपत्र रखा जाएगा । फूफा नाक चौड़ी करके कहेंगे कि हमारा कोई मान-सम्मान ही नहीं रहा । हमारा भी तो एक एजेंडा है । हमें भी तो समुचित आदर मिलना चाहिए । यह क्या कि शादी हो रही है और हमारे लिए न नया सूट सिलवाया गया ,न हमें मफलर दिया गया और न जूते खरीदवाए गए । कुछ फूफा गले में सोने की चेन की मांग करते हैं । कहते हैं, हम शादी में तब तक भाग नहीं लेंगे, जब तक हमारे गले में सोने की मोटी चेन ससुर जी नहीं पहना देंगे !
कुछ ऐसा ही हाल चुनाव के समय हो जाता है । सबसे ज्यादा बड़े वाले फूफा जी नाराज हैं । बड़े वाले फूफा अर्थात वह महारथी जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट मांगा था, मगर नहीं मिला । अब फूफा बिखरे पड़े हैं । किसी की आँख से आँसू बह रहे हैं, किसी की आँखें अंगारे बरसा रही हैं। कोई अपने समर्थकों के साथ घिरा हुआ षड्यंत्र रच रहा है ,तो कोई अकेले में आत्ममंथन करने में व्यस्त है । कुछ लोग माइक के सामने हैं । कुछ माइक को देखकर छह फीट पीछे हट जाते हैं । मगर मुंह खुले हुए हैं । यह तो जरूर कहते हैं कि हमारी ससुराल का मसला है , हम आपस में निपटा लेंगे। मगर कैसे निपटेगा, यह नहीं बताते।
उधर बुआ सबसे ज्यादा दुखी दिखती हैं । उन्हें डर है कि कहीं रूठे हुए फूफा अपना गुस्सा उनके ऊपर न उतार दें अर्थात चालीस साल पुरानी शादी का समझौता टूट न जाए । बारात चलने को है । बैंड बाजे वाले आ चुके हैं लेकिन फूफा टस से मस नहीं हो रहे । कहते हैं ,हमारा मान-सम्मान दो कौड़ी का हो गया । ससुराल पक्ष उनकी आवभगत में लगा हुआ है । भैया ! मान जाओ । शादी के समय इतना नखरा नहीं करते । बहुत कर चुके ! अब रस्म पूरी हो गई ! तुम्हें रूठना था ,थोड़ी देर रूठे। अब ढंग के कपड़े पहनो ,दाढ़ी बनाओ ,बालों में तेल-कंघी करो और सज-संवर कर दूल्हे के बराबर में खड़े हो । नकली मुस्कान ही सही लेकिन फोटो में मुस्कुराते हुए नजर आओ !
कई लोग फूफा की समस्या से जूझने के लिए कुछ अलग क्रांतिकारी प्रकार के विचार रखने लगे हैं । उनका कहना है कि फूफाओं को चुनाव के समय मनाने की कोई जरूरत नहीं है । इन्हें इनके हाल पर छोड़ देना चाहिए । जब देखो तब कोई न कोई समस्या लेकर खड़े हो जाते हैं । जैसे कि दूसरी पार्टी वालों की सरकार बन जाएगी तो धरती पर स्वर्ग उतर आएगा ? तुम्हारा सांसद या विधायक अगर किसी दूसरी पार्टी का बन भी गया तो कौन से आसमान से तारे तोड़ कर ले आएगा ? अब तक किसी ने क्या कर लिया जो अब कर लेगा ?
लेकिन फूफा को तो सारा गुस्सा अपनी ससुराल पर ही उतारना है । हमारी पार्टी, हमारी सरकार ,हमारे नेता ,हमारा उम्मीदवार जब तक नाक न रगड़े ,तब तक हम वोट डालने नहीं जाएंगे । मतदाताओं में जो मठाधीश बैठे हुए हैं ,वह भी किसी फूफा से कम नहीं हैं। बहुत से मुद्दे हैं ,जिन पर आग जलाकर फूफागण खाना पका रहे हैं। कुछ फूफाओं को विरोधी पार्टी के लोग हवा दिए हुए हैं । इन्हें घर का विभीषण समझा जाता है । इन विभीषण-टाइप फूफाओं का संबंध अपनी ससुराल से ज्यादा दूसरों की ससुराल से है । विरोधी पक्ष की ससुराल वाले उनका भाव रोजाना बढ़ाते हैं । कहते हैं कि आपसे ज्यादा महान आदमी तो इस संसार में आज तक पैदा ही नहीं हुआ ! खेद का विषय है कि आपकी पार्टी ने आपके “फूफत्व” को कभी नहीं पहचाना !
कुछ फूफाओं को सीधे-सीधे दूसरी शादी करने का निमंत्रण विरोधी पक्ष की ससुराल से मिल जाता है । कुछ फूफा नाराज होने के चक्कर में अपनी नाराजगी दिखाते-दिखाते जनता की निगाह में विदूषक की भूमिका निभाने लगते हैं । उनका खूब मजाक बनता है । लेकिन वह पहचान नहीं पाते । लोग कहते हैं कि फूफा ! अपने सिर पर दूल्हे की एक पगड़ी तुम भी पहन लो और फूफा सचमुच यह समझते हुए पड़ोसी द्वारा उपलब्ध कराई गई दूल्हे की पगड़ी पहनकर खड़े हो जाते हैं मानो वह पच्चीस साल के नवयुवक हों। पड़ोसी खूब मजे ले रहे हैं । कहते हैं वाह फूफा ! हाय फूफा ! डटे रहो फूफा ! कोई कहीं से एक मरियल-सी घोड़ी ले आया है । फूफा उस पर बैठ जाते हैं । चार-छह लड़के ड्रम बजाते हुए उनका जुलूस निकाल देते हैं।
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*लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
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