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24 Nov 2023 · 1 min read

चाह की चाह

चाह ही चाह में चाहने हम लगे,
चाह मिलती गई चाह पीते गए।
घर से निकले थे हम चाह की चाह में,
राह मिलती गई चाह पीते गए,
फिर मिले वो मुझे इक हंसी राह पर,
आगे वाले चौराहे की दुकान पर,
बात चलती रही, रात होती रही,
चाह बनती रही चाह पीते रहें।
बात ही बात में चाहने हम लगें,
बात बढ़ती गई चाह पीते गए।

© बदनाम बनारसी

6 Likes · 2 Comments · 1089 Views
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