चांदनी की बरसात के साये में चलते

चांदनी की बरसात के साये में चलते
तारों को परछाईओं में
रात भर हम निहारते वो महकते पल
बरसों बीत गए उन पलों को गुज़रे
पर आज भी महकते हैँ भीतर
जैसे यह हुआ था कल।
डॉ राजीव
चांदनी की बरसात के साये में चलते
तारों को परछाईओं में
रात भर हम निहारते वो महकते पल
बरसों बीत गए उन पलों को गुज़रे
पर आज भी महकते हैँ भीतर
जैसे यह हुआ था कल।
डॉ राजीव