चलो मकर संक्रांति मनाएँ
*चलो मकर संक्रांति मनाएँ*
धुंध कुहरे की चादर अब छटने लगी है।
मधुर मन का तमस अब हटने लगी है।
गए काँटों सी सर्दी,गुलाबी गर्म दिन आए।
धनु राशि से चल,सूर्य मकर राशि में आए।
घोर अंधेरे को चीर,नव चेतना मन में जगाए।
मकर संक्रांति सबके जीवन में खुशियाँ लाए।
सूर्य सी आभा जीवन में चमकने लगी है।
धुंध कुहरे की……………………………..1.
देखो आसमान में रंग-बिरंगें पतंगें लहराई है।
कहीं लोहड़ी,कहीं पोंगल,कहीं पीहू कहलाई है।
भोगली बिहू,कहीं खिचड़ी संग चावल की लाई है।
कहीं गुड़ तिल की लड्डू रिश्तों में मिठास छाई है।
दिन की अवधि अब,धीरे-धीरे बढ़ने लगी है।
धुंध कुहरे की ………………………………2.
ख्वाब तुम्हारे ऊँचा,पतंग सा पूरा खास हो।
जीवन में गुड़-तिल लड्डू सा पूरा मिठास हो।
सूर्य की आराधना से,हर जीवन में उल्लास हो।
दया,प्रेम फैले व जीवन में मधुर अहसास हो।
मौसम सुहाना खुशियाँ बेतहाशा होने लगी है।
धुंध कुहरे की…………………………….3.
*सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
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