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11 Aug 2022 · 1 min read

चलो प्रेम का दिया जलायें

नफरत का अंधियार मिटायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

आग स्वार्थ की लगी हुई है।
संवेदना मरी हुई है।
कोई किसी का हाल न पूछे,
बेगैरत की हवा चली है।
आओ मिलकर आग बुझायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

मानव, मानव का दुश्मन है।
खोता जाता अपनापन है।
कौन है अपना कौन पराया,
उलझन में सारा जीवन है।
आओ सब उलझन सुलझायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

जिसमें बीता सारा बचपन।
बँटता जाता वो ही आँगन।
एक ही घर में कई चूल्हे हैं,
रिश्तों में है ऐसी टूटन।
आओ हम रिश्तों को बचायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

धन जीवन आधार बना है।
कब इस बिन संसार चला है।
जीते मरते यह उपयोगी,
इसने सबको खूब छला है।
धन के आगे न प्रीत भुलायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

जाति धर्म में बँटे न कोई।
सत्य की राह से हटे न कोई।
पूजें अपने इष्ट सभी,
जंगल जैसे कटे न कोई।
इक दूजे को गले लगायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

नफरत का अंधियार मिटायें।
चलो प्रेम का दिया जलायें।

– रमाकान्त चौधरी

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