चलो चले कुछ करते है…
उषा से पहले जो उठके हमें उठाएं
छोटी सी नव किरण लेके हमें जगाएं
उठे जागे जाग के, हम कुछ कर जाएं
हर अह्न मिलती नई आस, कुछ कर पाएं…
श्येन से सीखो विघ्नों को चीर फाड़ना
सोच-सोच कर हयात में, हमें नहीं है बैठना
गिरी हमें सिखाती डटकर सदा खड़ा रहना
हम ठान चले कुछ करने को, बढ़ते ही चलना…
वीर्य से सस्य तक की सफर, बड़ा अनूठा
नाकामयाब से कामयाब की, सफर अपूर्वा
चलो कुछ करते हैं, ताकि हम कुछ कर जाएं
सफल होकर भुवन में, हम कुछ छाप छोड़ पाएं…
विलक्षणा की दुनिया में, खोने से कुछ न हो सका
ऐसे ही लाखों मानुष खोए, पर कुछ न हो सका
चलो चले चलते हैं गगन के, तारे गिनके उसमें खोएं
ताकि बच्चे बूढ़े हो या जवान, देख हमें सतत् मुस्काएं…
लेखक :- अमरेश कुमार वर्मा