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1 May 2020 · 1 min read

चलो, आज अपने मन की करते हैं

चलो आज अपने मन की करते है,
बदलते हैं अपने बनाए नियमों को,
मुक्त ख़ुद को सब बंधनों से करते हैं
आज अंजुली में अपनी सागर,
और बाहों में आसमान भरते है,
चलो आज अपने मन की करते हैं,
दुनिया की दौड़ में भागते भागते थक हुए हैं,
चल थोड़ा आराम करते हैं,
शाम को सुबह और सुबह को शाम करते हैं,
बदलते है दिन-रात की जगह,
दोनों मिल कर रात को दिन और दिन को रात करते हैं,
चलो आज अपने मन की करते हैं,
बदल देते है पीने पिलाने के नियम,
शराब की बोतलों को ठंडी चाय से भरते है
चुस्कियाँ लेते है कॉफी की,
बीयर की बोतलों में,
चल यह गुस्ताखी सरेआम करते हैं,
आजाओ कि आज अपने मन की करते हैं,
खिलंद्धड़ होने के इल्ज़ाम से ख़ुद को बरी करते है,
चलो आज अपने मन की करते है,
बोल देते हैं आज सब को सबकुछ उनके मुँह पर,
मन में दबाने वाले न अहसास रखते है,
चंद लोगों को दिखाएँ आईना,
और ख़ुद के चहरे की धूल साफ़ करते हैं,
चलो, आज अपने मन की करते हैं।

Language: Hindi
Tag: कविता
7 Likes · 4 Comments · 175 Views

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