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1 Jun 2024 · 1 min read

चली लोमड़ी मुंडन तकने….!

साठ साल की बड़ी लोमड़ी
अंगारों पर चढ़ी लोमड़ी
राजकुलों का मुण्डन तकने
मचल पड़ी नकचढ़ी लोमड़ी
औकातों से ऊँचे सपने
देख रही सरचढ़ी लोमड़ी
पहले लोगों को फुसलाया
फिर उनसे लड़ पड़ी लोमड़ी
बात न आगे बढ़ने पाई
खिसियाई भर पड़ी लोमड़ी
बोली सब अंगूर हैं खट्टे
घूम–घूम कह पड़ी लोमड़ी
नए–नए मुर्गाें को खोजे
कोयला कोयला हुई लोमड़ी

–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*ये मेरी स्वरचित रचना है
©️®️ सर्वाधिकार सुरक्षित

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