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15 May 2023 · 1 min read

चलती है जिंदगी

कदम एक बढ़ाती है,
धीमी सी मुस्काती है,
सरपट दौड़ लगाती है,
सुंदर भोर के आने से।
देखो, सुबह जग जाती है, जिंदगी..
दिन के रेलम पेल में,
निज जीवन झमेल में,
उदर क्षुधा सम्मेल में,
यदा कदा भटकाती है।
देखो, दिन में भाग लगाती है, जिंदगी..
धीरे कदम ठिठकती है,
हर पग पीछे हटाती है,
घर की चिंता सताती है,
दिनकर के ढल जाने से।
देखो,फिर मुड़कर आती है, जिंदगी..
सुकून भरी सुस्ताती है,
मन ही मन हर्षाती है,
सपनो में खो जाती है,
रजनी के चल आने से।
देखो, कैसे दुबग जाती है, जिंदगी..
जिंदगी के इस खेल में,
दिन और रात के मेल में,
कभी पास और फैल में,
अधुरी पूरी ढल जाती है।
देखो,कँही दूर निकल जाती है, जिंदगी..
रचनाकार@डॉ शिव लहरी’

Language: Hindi
237 Views
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