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9 Feb 2023 · 1 min read

घुमंतू की कविता #1

पंचभूत की धूनी में जब
रहा कहीं रमा हुआ ये चित्त मेरा,
पंचभूत की ज्योति से तब
पूर्णतः भस्म हुआ ये चित्त मेरा।

यहां गया वहां गया, जाने कहां कहां गया,
ये देखा वो देखा खुद को देखा खुद में खोया।

ये कहता वो कहता, कौन जाने क्या कहता,
उसने कहा मैंने सुना और मैं सत्य का हो गया।

पंचभूत की धूनी में जब
रहा नहीं रमा हुआ ये चित्त मेरा,
पंचभूत की ज्योति से तब
पूर्ण उन्मुक्त हुआ ये चित्त मेरा।

~ रचयिता – राजीव भाई घुमंतू

पढ़ने और पसंद करने के लिए धन्यवाद

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