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31 May 2022 · 1 min read

ग्रीष्म ऋतु

कोयल काली कूक रही है
अम्बुआ की डाली डाली ।
सुबह सबेरे फुदक रही है
मुदित मगन हो मतवाली ।।

बुलबुल लेकर तान सुरीली
मधुर कण्ठ से गाती है ।
छत की मुंडेरों पर बैठी
पल पल में उड़ जाती है ।।

खेतों में हिरणों के कुनबे
रम्य कुलाँचे भरते हैं ।
ऊपर से भी कूद निकलते
नहीं किसी से डरते हैं ।।

उमस भरी तपती दोपहरी
कृषक खेत में जाते हैं ।
खाली खेतों को निहार कर
अपना मन बहलाते हैं ।।

बाट जोहते सब मेघों की
नभ की ओर नजर करते ।
नीर भरे आएंगे एक दिन
ग्रीष्म तपन से न डरते ।।

Language: Hindi
113 Views
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