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7 Jan 2023 · 1 min read

गुमनाम

उनको तजना नामुमकिन सा पाता हूं
कोंपल हूं जिन दरख़्तो का,नाम लिया जाता हूं
मूर्ख मिट्टी को तेरे काबिल जो बनाया है
निरीह उस जन के नाम दो चार पल किए जाता हूं।
तजना मुनासिब नहीं गर, कोशिशें जेहन में कयूकर
दो चार पल उनके, उम्र भर है तू रहबर
उन्हीं से बगावत सरेआम किए जाता हूं
ना उनका बना ना तेरा हुआ, गुमनाम हुआ जाता हूं।
मिन्नतें तुझी से है आशरा तुम्हारा
जिनके साए में पलके मिला हूं तूम्हे
कौन है कायनात में, सिवाय उनका मेरे
इस क्षणिक पल में बदनाम हुआ जाता हूं।
निगाहें उठीं जो उनकी हमारी राह में
देखा कातर दृष्टि से,आसियां के भाव से
गर आज ना मिला मैं जानें कहां जाएंगे किस हाल में
आजकल क्यूं मैं उनको बेहाल सा पाता हूं।

स्वरचित कविता:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”

Language: Hindi
2 Likes · 228 Views
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