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21 Jan 2023 · 1 min read

गीत

कर्म वादी चेतनाओं को सुलाकर,
भाग्य सिद्धी मंत्र लेने जा रहें हैं।
कौन अब दर्शन पढ़े शंकर तुम्हारा,
आजकल तो दृष्टिबंधक भा रहें हैं।

रख धनुष ले प्रश्न बैठे राम, ज्योतिष को बुलाकर
यदि हमें सीता मिलें तो ही करें हम युद्ध जाकर।

त्यागकर अभ्यास तप का, कंठियाँ लेकर खड़ी हैं।
धैर्य खोकर अहिल्याएँ, जोगियों के पग पड़ी हैं।

ठीक हो मति कैकई की, स्वयं दशरथ
द्रव्य अभिमंत्रित कराने जा रहें हैं।
कौन अब दर्शन पढ़े शंकर तुम्हारा,
आजकल तो दृष्टिबंधक भा रहें हैं।

जल गए हैं वेद सारे, उपनिषद भी खो गए हैं।
गेरुआ रंग ओढ़कर, कुछ लोग ब्रम्हा हो गए हैं।

खा गई गीता को दीमक, खो चुके है कंठ मोहन।
दिव्य बहुरुपिए करेंगे, अर्जुनों का कष्ट मोचन।

अब अहं ब्रम्हास्मि वाले, ब्रम्ह त्यागे,
गुण चमत्कारों के मिलकर गा रहें हैं।
कौन अब दर्शन पढ़े शंकर तुम्हारा,
आजकल तो दृष्टिबंधक भा रहें हैं।

कर्म आधा छोड़कर सब ओर फल के देखते हैं।
आज से अधिकार खोकर, मात्र कल का सोचते हैं।

आज ही ही से तय कराना चाहतें हैं सांस कल की।
और खुशियां पूर्व निश्चित, ले करा हर एक पल की।

सत्यकटु जो बांच सकते थे वही, अब
दिव्य दृष्टा भांड होते जा रहें हैं।
कौन अब दर्शन पढ़े शंकर तुम्हारा,
आजकल तो दृष्टिबंधक भा रहें हैं।
©शिवा अवस्थी

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