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29 Jul 2018 · 1 min read

#ग़ज़ल-42

# ग़ज़ल#
वज़्न 212-212-212-212
आज फिर याद आई मुझे गाँव की
प्यार के मेल की खेल के ठाँव की/1

यार मिलते गले चार पीपल तले
मौज मस्ती हँसी छोड़ते दाँव की/2

दूर थे वैर के भाव से एक हम
प्यार ही दौड़ थी हर उठे पाँव की/3

मान माँ-बाप का शान खुद की लिए
माँगते थे दुवा प्रीत की छाँव की/4

जो मिला राम का नाम लेकर चले
बोल कोयल बने ना कभी काँव की/5

देखके ये शहर गाँव जँचता हमें
प्रीत प्रीतम नहीं है यहाँ भाव की/6

आर.एस.”प्रीतम”

1 Like · 385 Views
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