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18 Aug 2024 · 1 min read

ग़ज़ल __पी लिया है जाम ए कौसर ,दिल नहीं लगता कहीं ,

🙏🌹💖🥰
एक ताज़ा #ग़ज़ल
1,,
पी लिया है जाम ए कौसर ,दिल नहीं लगता कहीं ,
दोस्तों ! सुन लो, ज़मीं पर दिल नहीं लगता कहीं ।
2,,
हर तरफ़ है शोर , साज़िश चल रही किसकी इधर ,
किस तरफ़ जाऊं बिरादर, दिल नहीं लगता कहीं।
3,,
हादसों पर हादसे , होती दिखी आवारगी ,
लोग गिरते ट्रेन ऊपर , दिल नहीं लगता कहीं।
4,,
आइना दिखला दिया तो ,चोट तुझको ही लगे,
ठोकरों में आएं पत्थर , दिल नहीं लगता कहीं।
5,,,
गम हज़ारों हैं मगर , गम की दवा मिलती किधर,
सोचते रहते सरासर , दिल नहीं लगता कहीं ।
6,,
अपनि दुनिया में हुकूमत ,अपनि होनी चाहिए ,
‘नील’ रखती खौफ़ ए महशर, दिल नहीं लगता कहीं ।

✍️ नील रूहानी,,, 18/08/2024,,,,,
( नीलोफर खान )

शब्दार्थ ___
जाम ए कौसर _ स्वर्ग के कुंड का पवित्र पानी
बिरादर _ भ्राता, भाई
सरासर _एक सिरे से दूसरे सिरे तक ,
महशर _ कयामत , प्रलय

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