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6 Feb 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

बहके हुए हैं लोग नज़र की ज़बान से
ख़ुद का मकान देख ग़ैर के मकान से

कुछ भी कहो सबको सभी आज़ाद हैं
पी रहें सभी हैं ज़हर अपने कान से

साँसें बँधी है ग़ैर की साँसों की डोर से
इतरा रहें कुछ लोग ख़ुदी की गुमान से

ग़म को खरीदतें है खुशियों को बेचकर
यूँ है तिज़ारत ज़िन्दगी ऐसी दुकान से

होठों पे सूखती है आकर के फिक्र यूँ
बिखरे हुए हैं लोग चाहतों की शान से

ख़ामोश बदतमीजियों पे रहना ठीक है
माहौल यूँ बीमार है ज्यादे निदान से

लगता है ‘महज़’ रास्ता है इंकलाब का
बन जायेगा नज़रिये के आँधी तूफान से

Language: Hindi
1 Like · 47 Views
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