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2 Jan 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

सारे बहरों के कान खोलेंगे
जब ये गूँगे ज़बान खोलेंगे

किसको मालूम था कि मज़हब की
लोग इक दिन दुकान खोलेंगे

दिल के पन्ने भी खोलिए कब तक
सिर्फ गीता कुरान खोलेंगे

क्या ये सच है निक़ाब वो अपना
बज़्म के दरमियान खोलेंगे

तेरे ज़ुल्मो सितम के राज़ सभी
‘नूर’ ये नीम-जान खोलेंगे

✍️जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी ए वी पी जी कॉलेज आज़मगढ़

1 Like · 187 Views
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