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28 Apr 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

‘इश्क की होली’

किनारा कर लिया जग से मगर मन पीर रखते हैं।
जलाकर इश्क की होली जख़्म गंभीर रखते हैं।

हवा का तेज़ झोंका ले उड़ा यादें जवानी की
ज़हर के घूँट पीने की अजी तासीर रखते हैं।

कँटीले तीर के खंज़र चलाकर देख ले दुनिया
जिगर में हौसले की हम सदा शमशीर रखते हैं।

मिटाया रंज़ो गम को ज़िंदगी की स्याह रातों से
इरादों में बुलंदी की यहाँ तासीर रखते हैं।

नहीं छोड़ा खुशी का ज़ाइका दिल ख़ार कर डाला
बना अंगार हसरत को जकड़ जंज़ीर रखते हैं।

नहीं शिकवा -शिकायत है नहीं मज़बूरियाँ ‘रजनी’
पुरानी दास्तां तजकर नई तहरीर रखते हैं।

डॉ. रजनी अग्रववाल ‘वाग्देवी रत्ना’

3 Likes · 2 Comments · 171 Views

Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'

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