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5 Feb 2023 · 1 min read

ग़ज़ल चाह जी भर कर मुझे

कह उठा मन, मिल गया है चाहतों का घर मुझे।
उसकी आँखों में दिखा जब प्यार का सागर मुझे।

मुस्कुरा कर कह रही है आज मुझसे ज़िंदगी,
चार पल की ज़िंदगी है चाह जी भर कर मुझे।

एक पल भी है न ऐसा जिसको अपना कह सकूँ,
ढूँढते रहते हैं ये घर और ये दफ़्तर मुझे।

पत्थरों के साथ रहकर आदमी पत्थर हुआ,
याद फिर आने लगा है गाँव का छप्पर मुझे।

ख़त्म होती ही नहीं हैं जिससे बातें प्यार की,
दिल में उसके कौन है मिलता नहीं उत्तर मुझे।

Language: Hindi
206 Views
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