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4 Jun 2016 · 1 min read

ग़ज़ल।मुझको सिफ़ारिश न मिली ।

आज तक मेरे प्यार को बेसक गुज़ारिश न मिली ।
हूँ आंसुओ में तरबतर पर एक बारिस न मिली ।।

आये इलाजे इश्क़ की बनकर दवा इस जिंदगी में ।
चार दिन रौनक रही फ़िर कोई नुमाइश न मिली ।

एकटक नज़रों के बदले दे गये तनहाइयां फ़िर ।
दर्द का हिस्सा मिला यांदें निख़ालिश न मिली ।।

बेवज़ह आँखों का मेरे जुल्म साबित हो चुका था ।
फ़ैसला उनको मिला मुझको सिफ़ारिश न मिली ।

एक दिल था ,एक उनके थी अदाओं की काशिस ।
एक तरफ़ा प्यार में कुछ आजमाइस न मिली ।

रौंदकर मेरी चाहतों को खो गये हमआम बनकर ।
मंजिलें लाखों मिली पर एक ख़्वाहिश न मिली ।।

आज भी गर्दिश है’रकमिश’ तू नही तो कुछ नही ।
प्यार में खाया ज़फ़ा फ़िर भी रहाइस न मिली ।।

©राम केश मिश्र’रकमिश’

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