Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Apr 2020 · 2 min read

गणतंत्र

कितना कम फर्क है स्वतन्त्रता व गणतन्त्र दिवस में। मैं दोनों ही दिन कमरे में बैठा मैथ-फिजिक्स के सवालों से जंग करता हूँ जैसे शायद कमोबेश लड़े हों स्वतन्त्रता सेनानी अंग्रेजों से।

छुट्टी है आज, किस काज के लिए मैं ब्रश करता हुआ सोचता हूँ। छत की मुंडेर पर खड़ा जहाँ तक नज़र जाए ,तिरंगे को ढूंढने की कोशिश करता हूँ(हाय, देशभक्त मैं!)। दूर कहीं एक पान के ठेले की दोनों छोरों पर दो छोटे झंडे दिखाई पड़ते हैं। मानो सींग बनाये गए हों साभिप्राय। दूर कहीं से कोई महिला बड़े करुणता से अपने वतन के लोगों को न जाने कौन सा नारा लगाने की रट लगाए बैठी है। महिला परिचित-सी लगती है। पास के स्कूल से “लौंग-लाची” गाने के साथ ताली-सिटी और शोर के सुर प्रवाहित होते मेरे कानों पर टकराते हैं। मैं बेमतलब नज़रे घुमाता हूँ। सामने वाले मन्दिर की ओर गौर करता हूँ। तब-ही मेरे मन में ख्याल आता है कि भारत माँ के बहुत मंदिर क्यों नही? मैं माँ और देवी की विसंगति को पाटने की नाकाम कोशिश करता हूँ। मेरे दिमाग में बचपन के दिन घुमड़ रहे होते हैं। जन-गण-मन की धुन चहकती है भीतर। दंगे-जात-धर्म-दुराचार की याद उस धुन को उदासी में परिणत करने लगती हैं। मैं भारहीनता महसूसता हूँ। लोगों की दुकानें आज भी दस बजे खुलेंगी। जानना चाहता हूँ उनकी राय दिवस की बाबत। तभी सामने वाले उसी स्कूल से “जय और मातरम” का अनुनाद गूँज पड़ता है। “भारत माता की.. और वन्दे..” का अनुमान मेरा दिमाग खुद लगा लेता है। तभी मेरा मुँह ब्रश के फेन से भर जाता है। मैं नल की तरफ दौड़ता हूँ। मुँह धोकर सोचता हूँ काफी समय जाया हो गया देश के बारे सोचते। दरवाजे पर मैथ-फिजिक्स के सवालों को तैनात पा सहम जाता हूँ।

Language: Hindi
Tag: लेख
382 Views
You may also like:
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
Dr Archana Gupta
आँख से अपनी अगर शर्म-ओ-हया पूछेगा
आँख से अपनी अगर शर्म-ओ-हया पूछेगा
Fuzail Sardhanvi
"निरक्षर-भारती"
Prabhudayal Raniwal
इस बार फागुन में
इस बार फागुन में
Rashmi Sanjay
नेहा सिंह राठौर
नेहा सिंह राठौर
Shekhar Chandra Mitra
जवाब दे न सके
जवाब दे न सके
Dr fauzia Naseem shad
जाते हो किसलिए
जाते हो किसलिए
Dr. Sunita Singh
मुझे प्रीत है वतन से, मेरी जान है तिरंगा
मुझे प्रीत है वतन से, मेरी जान है तिरंगा
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
बुद्धत्व से बुद्ध है ।
बुद्धत्व से बुद्ध है ।
Buddha Prakash
नन्ही भव्या
नन्ही भव्या
Shyam kumar kolare
छंद:-अनंगशेखर(वर्णिक)
छंद:-अनंगशेखर(वर्णिक)
संजीव शुक्ल 'सचिन'
प्रेम समर्पण की अनुपम पराकाष्ठा है।
प्रेम समर्पण की अनुपम पराकाष्ठा है।
सुनील कुमार
■ समयोचित सलाह
■ समयोचित सलाह
*Author प्रणय प्रभात*
*शादी (कुंडलिया)*
*शादी (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
वापस लौट नहीं आना...
वापस लौट नहीं आना...
डॉ.सीमा अग्रवाल
“ अभिव्यक्ति क स्वतंत्रता केँ पूर्वाग्रसित सँ अलंकृत जुनि करू ”
“ अभिव्यक्ति क स्वतंत्रता केँ पूर्वाग्रसित सँ अलंकृत जुनि करू...
DrLakshman Jha Parimal
मुक्तक
मुक्तक
Rajkumar Bhatt
అభివృద్ధి చెందిన లోకం
అభివృద్ధి చెందిన లోకం
विजय कुमार 'विजय'
बढ़ने वाला बढ़ रहा, तू यूं ही सोता रह...
बढ़ने वाला बढ़ रहा, तू यूं ही सोता रह...
AMRESH KUMAR VERMA
"मेरी दुनिया"
Dr Meenu Poonia
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
How long or is this
How long or is this "Forever?"
Manisha Manjari
✍️चश्म में उठाइये ख़्वाब...
✍️चश्म में उठाइये ख़्वाब...
'अशांत' शेखर
ज़िंदा हो ,ज़िंदगी का कुछ तो सबूत दो।
ज़िंदा हो ,ज़िंदगी का कुछ तो सबूत दो।
Khem Kiran Saini
Jindagi ka safar bada nirala hai ,
Jindagi ka safar bada nirala hai ,
Sakshi Tripathi
💐प्रेम कौतुक-291💐
💐प्रेम कौतुक-291💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
उसको उसके घर उतारूंगा मैं अकेला ही घर जाऊंगा
उसको उसके घर उतारूंगा मैं अकेला ही घर जाऊंगा
कवि दीपक बवेजा
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
जरूरी नहीं राहें पहुँचेगी सारी,
जरूरी नहीं राहें पहुँचेगी सारी,
Satish Srijan
इक रहनुमां चाहती है।
इक रहनुमां चाहती है।
Taj Mohammad
Loading...