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9 Aug 2016 · 1 min read

**ख्वाबों की फस्लें आज भी मैं बोया करता हूं**

एक पुरानी गज़ल-

**ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं::गज़ल**

हक़ीक़त जान ले कि रात भर मैं रोया करता हूं,
बहुत हैं दाग दामन में जिन्हें मैं धोया करता हूं l

यक़ीनन बांझ हैं दिल की जमीं मैं मान लेता हूं,
मगर ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं l

मेरा अरसा गुज़र गया तेरी यादों की चौखट पर,
ना जाने क्यूं तेरी यादों में ऐसे खोया करता हूं l

उगा करती है तेरी याद इन पलकों के गोशों में,
जिसे मैं आंसुओं से सींचता,संजोया करता हूं l

एक मुद्दत से कई ख्वाब मेरी चौखट पे बैठे हैं,
मेरी आंखें बता देंगी मैं कितना सोया करता हूं l

ये बात सच है कि मैं लोगों से तेरा ज़िक्र नहीं करता,
मगर छुप-छुप के तुझे गज़लों में पिरोया करता हूं ll

All rights reserved.

-Er Anand Sagar Pandey

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