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30 Apr 2020 · 1 min read

खेल झाँसे का था

ये खेल झाँसे का था इश्क तो बहाना था
मेरा ही तीर था और ख़ुद मैं ही निशाना था

न वक़्त ठहरा कभी ज़िंदगी भी चलती रही
चले गए वो मुसाफिर जिन्हें भी जाना था

कहाँ भरोसा करें अब यकीन कैसे हो
दग़ा करेगा वही जिसको अपना माना था

मिसाल होनी थी जिसकी वफ़ा निभाने की
उसी के बस में कहाँ रिश्ता ये निभाना था

गुनाहगार नहीं था सज़ा मिली कैसी
कसूर क्या था मेरा सबको ये बताना था

तलाश करते रहे सब जिसे ज़माने में
ठिकाना उसका हमेशा शराब खाना था

कि शायरी ने तो बदनाम कर दिया ‘सागर’
वो लोग आते नहीं जिनका आना जाना था

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