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22 Mar 2024 · 1 min read

* खूब खिलती है *

** गीतिका **
~~
कली जब स्नेह की सुंदर हृदय में खूब खिलती है।
समझ लो आ गया फागुन नयन से नींद उड़ती है।

सभी खाली यहां आते व खाली हाथ हैं जाते।
हमेशा पास धन दौलत कहां कब साथ रहती है।

बढ़ी जब दूरियां मन की अकेला हो गया जीवन।
बहुत मुश्किल बिताना दिन तड़पते रात कटती है।

निशा जब खत्म हो जाती मिटा करता तमस देखो।
खिलाती फूल रवि किरणें सुबह जब भी निकलती है।

अधर कोमल बहुत ही खूबसूरत पांखुरी जैसे।
सभी का मोह लेती मन मधुर मुस्कान खिलती है।

नहीं रुकती कहीं कोई नदी अविरल बहा करती।
किया करती सभी का हित धरा की प्यास बुझती है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०३/२०२४

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