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13 Jan 2023 · 1 min read

खिलौने भी तब मिले

साथ वाले निकल गए
कितना आगे मुझसे।
ईमान की सवारी में
मैं पीछे रह गया।

कारवां रहा अधूरा
अधूरी रही मंजिल,
जबकि कभी डगर में
आज तक रुका नहीं।

ख्वाहिश न हुई पूरी
जिंदगी में अक्सर।
कल तक थे ख्वाब रोटी के,
अब चाहत है भूख की।

जीवन में हर कदम पर,
यूँ ही छला गया।
खिलौने भी तब मिले,
जब बचपन चला गया।

सतीश शर्मा सृजन
लखनऊ (उप्र)

Language: Hindi
45 Views
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