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20 Aug 2021 · 1 min read

क्यों मै अपरिचित ?

सागर चीर- चीर के नभ नतमस्तक
घेर – घेर रहा स्वप्निल दरवाजा के बुलन्दी
फौलादी बढ़ चला शिखर अमरता के
जो तपता आया तन – तन जिसके प्रचण्ड

बढ़ चला धूल भी वों अभी धूमिल
कलित है तल आया त्वरित कल से
अन्समञ्जस हूँ क्यों मै अपरिचित ?
लौट आऊँ ओट के दुल्हन नभ से

तरुवर छाँव के क्या एक तिनका सहारा ?
क्या उँड़ेल दूँ आहुती भी दूँ किसका ?
तड़पन में कराह रही कौन जाने मेरा राह ?
टूट के बिखरा कब वसन्त, कब पतझर भला ?

पङ्ख पङ्क्ति को तो हेर कौन रहा ?
सब तन्मय मोह – माया के जञ्जाल में
आज यहाँ अट्यालिका कल वों बाजार
हो चले भव रुग्णनता के हाहाकार…

यह व्याथाएँ परिपूर्ण नहीं है अभी बाकी
पूँछ लो उसे जो बाँधती कफन पेट को
लूट – लूट साम्राज्य का क्या नेस्तानाबूद ?
मत करो और नग्न जिसे लिबास नहीं

Language: Hindi
Tag: कविता
250 Views
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