क्या हार जीत समझूँ
क्या हार जीत समझूँ
क्या प्राण प्रीत समझूँ
स्वप्न तो हैं , स्वप्न यहाँ
क्या तान गीत समझूँ।।
आशाओं का आशियाना
ऋण सज्जित यह तराना
ठहरो, अभी गाऊंगा फिर
सांसों का मैं, लड़खड़ाना।।
अनुग्रह राशि सी देह में
कितने अनुबंध बाकी हैं
एक एक पूरा तो कर लूं
अभी पैमाना , साकी है।।
अंतर्मन की परीक्षा में हूँ
प्रकृति का श्रृंगार कर दूं
फिर प्रेयसी, गीत रचूंगा
कुछ साँसें उधार ले लूं।।
सूर्यकांत