क्या हम स्वतंत्र हैं?
हम स्वतंत्र हैं
लोग कहते हम स्वतंत्र हैं
विचारों की अभिव्यक्ति
के लिए स्वतंत्र हैं
उन दिनों
अंग्रेजो ने यहाँ राज किया
उन अंग्रेजो की दासताँ
सभी लोगो ने सहा।
उन अंग्रेजो को “खुशामद – चापलूस”
करने वाले ही पसंद थे।
लेकिन हमारे जवानों ने चापलूसी करना
स्वीकार नहीं किया
हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए
वीरों ने आवाज उठाया
वीरों ने जान गवांया
वीर शहीद हो चले
वीर बलिदान हो चले
वीरो के आगे अंग्रेजी “हुकूमत”
हार गया
अंग्रेज यहाँ से चले गए।
फिर भी क्या —–?
क्या आज हम स्वतंत्र हैं?
स्वतन्त्रा की परिभाषा
उस गरीब से पुछो
दो वक्त की रोटी
तन ढकने वस्त्र के लिए
वह तरस रहा
न रहने के लिए मकान है
न ही उसके पास “खेत – खलिहान” है
जिंदगी फुटपाथो पर ही चल रहा
उसका जीवन ऐसे ही चल रहा।
गरीब का बचपन
गरीब के अरमान
दो वक्त की रोटी के लिए
संघर्ष कर रहा है
एक दिन वह यहाँ से चला जाता है
बस उसी दिन उसे छ: फीट की कफ़न
नसीब होता है, उसे कफन पहना कर
दो गज की जमीं में दफना दिया जाता है,
अंततः तक उसको स्वतंत्रता नसीब नहीं होता है।
क्या आज हम——?
हम हमारे ही देश में
मंहगाई, भ्रष्टाचार
गरीबी, बेरोजगारी
के गुलामी में कैद हैं।
जहाँ देखिए
अमीरों द्वारा गरीबों का “शोषण”
गरीब का जीवन हो रहा “कुपोषण”
जिसे देखो पैसा के पीछे भाग रहा
जिसे देखो कुर्सी के लिए लड़ रहा।
प्रतिस्पर्धा के दौड़ में
मानवता खो रहा
मानव ही मानव का कर रहा शिकार
मानव ही मानव पर कर रहा अत्याचार।
यह मानव ही आपस में लड़ रहे
कभी धर्म, कभी जाति
कभी पद प्रतिष्ठा के लिए,
यह मेरा, वह तेरा कह रहा
है मानव।
आज
मानव के जीवन में “अहं” ने कर
लिया है बसेरा
न उसे सुर्य की रोशनी दिखता
न ही रात्रि का अंधेरा।
चारो ओर वही “चापलूस” नजर आ रहें हैं
खुले विचारों की अभिव्यक्ति
मन में सिमट कर रह जा रही हैं।
यहाँ ज्ञान बिकता है
यहाँ तन बिकता है
बिकता है यहाँ “इमान”
यहाँ हर आदमी है परेशान।
फिर हम क्या कहें
क्या हम स्वतंत्र हैं
क्या हम स्वतंत्र हैं।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)