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3 Sep 2016 · 1 min read

क्या लिखूँ

आज कुछ लिखूँ तुम पर
पर क्या लिखूँ
कविता ,छन्द या दोहा
कविता से सरस तुम
मुक्तक से स्वच्छन्द तुम
पर मैं क्या लिखूँ

तुम मेरे प्रिय हो
मुझे बडे अजीज हो
महाकाव्य या खण्डकाव्य
मन चाहा लिखूँ
अभी तो तुमने
दी दस्तक मेरी जिन्दगी में
बाकी है बरतना

अभी तो जुटा रही हूँ
काव्य साम्रगी
कुछ नजदीकिया पूरी
बाकी है कुछ
खण्ड खण्ड जोड जोड
खण्डकाव्य लिखूँ

तुम भी हो अनावृत
सबकुछ साफ साफ
रहस्य को खोल
ना करना आँख मिचौली
क्योंकि मैं तुमको
अब समझने लगी हूँ
पढने लगी हूँ

बीते दिन की करतूत
ना दोहरा देना
जैसा कहूँ मेरा
कहना मान लेना
क्योंकि अब तुम
मेरे पन्नों में हो
मेरी लेखनी में

जैसे सूरज उदित
होता बैसे आना
तुम्हारा होता
फिर विलुप्त हो जाते
अगले आगमन को
कितना कष्टदायी है
आना जाना तुम्हारा
फिर मेरा कैसे हो पूरा
मेरा यह खण्डकाव्य

शुक्रिया तुम्हे
मेरे खण्डकाव्य का
विषय हो तुम
दूर सफर है
मन चंचल ना करना
हाथ मेरा जो थामा
सदा सदा सदा

Language: Hindi
71 Likes · 525 Views
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