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15 Jan 2024 · 1 min read

क्या यही संसार होगा…

चरम पर व्यभिचार होगा।
बढ़ रहा अँधियार होगा।

सात्विकता क्षीण होगी,
तमस का विस्तार होगा।

गालियों से बात होगी,
अस्मिता पर वार होगा।

ध्वस्त होंगीं सभ्यताएँ,
मूल्य मन पर भार होगा।

जिंदगी बेज़ार होगी,
मौत का व्यापार होगा।

पाशविकता पास होगी,
फेल शिष्टाचार होगा।

भंग होगी लय सुरों से,
टूटता हर तार होगा।

भूलकर कर्तव्य सारे,
याद बस अधिकार होगा।

क्या खबर षड़यंत्र क्या फिर,
ले रहा आकार होगा।

नींव आगत की यही क्या ?
क्या यही आधार होगा ?

क्या यही सुख-सार होगा ?
क्या यही संसार होगा ?

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
फोटो गूगल से साभार

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