क्या कुष्ठ रोग अभिशाप है?
(1) यह मनुष्य कई रुपों में आता है
कभी वह साधु – संत
कभी वह दानव बन जाता है
भोग – भौतिकता के इस जगत में
मोह – माया के उलझनों में वह फँस जाता है।
यह मनुष्य सिर्फ़ तन की सुन्दरता की ओर चला जाता है
कुरुपता की तन से मुख मोड़ता चला जाता है।
एक बार वह उस कुरुपता (कुष्ठ रोगी) के बस्ती में चला जाए
बार-बार अपने नाक को सिकुड़ता है।
वह (कुष्ठ रोगी) भी तो एक मनुष्य है
उसके तन से बढ़ कर उसका मन है।
(2) किसी परिवार में ऐसे (कुष्ठ) रोगी मिल जाए
उसके संतान उसे बेदखल करते हैं
वह मनुष्य (कुष्ठ रोगी) भिक्षा माँग कर अपना पेट भरतें है
फिर भी वह मनुष्य अपनी संतानों को खूब आशीष देते हैं।
(3) एक बुजुर्ग को मैनें देखा उनका भरा पूरा परिवार था
अपने समय में वह लेखापाल था
खुशियाँ उसके जीवन में हजार था।
सेवानिवृत होने के बाद (कुष्ठ रोग) ने उसे जकड़ लिया
उसके संतानों ने उसे बहिष्कृत कर दिया।
वह इस पापी पेट के लिये भीख माँगने को लाचार हुआ
गली – गली वह जाता
भिक्षा माँग कर वह खाता।
एक दिन मुझसे रहा नहीं गया
मैं अपने मन को रोक नहीं पाया
मैनें उन्हें अपने पास बैठाया।
उनकी जीवन कहानी सुन भाव – विभोर हो गया
उन्होनें मुझे बताया
मेरा खुशी भरा संसार था
मैं पेशे से निजी संस्थान में लेखापाल था।
सभी पुत्रों को मैनें पढ़ाया
सभी पुत्रों को ऊँचे पदों में आसीन करवाया।
इस रोग (कुष्ठ) ने मुझे जकड़ लिया
मुझे अपने परिवार से बेदखल कर दिया।
मैं दूसरे राज्य से आया हूँ
अब मैं भिक्षा माँगता हूँ
हाँ एक बात है मेरे बेटे
मैं अभी कुछ दिन हुए है
तुम्हारें राज्य के
तुम्हारें नगर में
एक
मेडिकल स्टोर में लेखापाल का काम करता हूँ
उस कमाई के पैसे को अपनी पत्नि को मनीआर्डर करता हूँ
मैं सदा सभी जनों के कल्याण के लिए उस प्रभू से प्रार्थना करता हूँ।
25 अगस्त 1992 की उन महोदय की कहानी ने मेरे दिल को झकझोर कर दिया
आज उस कहानी को लिखने के लिए मेरे मन ने मजबूर कर दिया।
अब मैं राकेश आज के संतानों से सवाल करता हूँ
क्या कुष्ठ रोग अभिशाप है?
क्या इसका कोई नही ईलाज है?
इसका ईलाज है मेरे भाई
इसका ईलाज तो करवाओं
अपने परिवार में सदा वही खुशहाली पाओ।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)