कौन हिसाब रखे

तेरी अजीयतों का अब ,कौन हिसाब रखें ।
संभाल कर दिल में अब कौन अज़ाब रखें ।
बाब्सता तुमसे ही था हर ख्वाब बस हमारा,
अच्छा है इन आंखों को ,अब बेख्वाब रखें।
इतने संगदिल तुम पहले तो कभी न थे
कब तर्क तेरे जुल्मों की हम किताब रखें।
लहज़े में नहीं नर्मी, न दिल में कोई खौफ
इंसा को जरूरी है ,थोड़ा तो आदाब रखें।
कूच कर के इस जहां से, अंधेरे राह है आगे
ख़ताये छोड ,साथ नेकी का आफताब रखे।
सुरिंदर कौर