कैसे भूल सकता हूँ मैं वह

क्या नहीं हुआ मेरे साथ,
बचपन से मेरी बेरोजगारी तक,
कब और कितना तुमने दिया है,
मुझको सच्चा प्यार दिल से,
जरूरत पड़ने पर मुझको सहारा,
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह।
बहुत उठाया था फायदा तुमने,
बूढ़े माँ बाप की लाचारी का,
कब बांटा था दुःख तुमने उनका,
क्या नहीं कहा था तुमने मुझसे,
जब मांगी थी मैंने तुमसे शरण,
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह।
कर दिया भ्रमित तुमने मेरे खिलाफ,
मेरे माँ बाप और समाज को,
रोता रहा हूँ देर रात तक,
नहीं आया रहम तुमको,
मजबूरियां बताते रहे तुम,
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह।
उड़ाते रहे मेरा मजाक तुम,
टूटा हुआ था जब दिल मेरा,
जब थे गर्दिश में मेरे सितारें,
तुम्हारे दिल था मेरे लिए,
कितना था सम्मान तब,
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह।
तुम सोचते होंगे अब यह,
क्यों नहीं है मेरे मन में अब,
तुमसे मिलने का उत्साह,
तुम्हारे लिए कोई सम्मान,
जैसी करनी वैसी भरनी,
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)