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19 Mar 2023 · 1 min read

कैसे पाएं पार

** गीतिका **
~~
जहां फूल खिलते वहां, रहते हैं कुछ खार।
कोमलता के साथ जो, चुभ जाते हर बार।

अवचेतन मन में बहुत, उलझ गयी है प्रीत।
समझ नहीं आता हमें, कैसे पाएं पार।

अपने अपने स्वार्थ में, डूब गए हैं लोग।
किन्तु फिर भी नचा रहा, सबको यह संसार।

पूर्ण रूप से बन रहा, वर्षा का संयोग।
सबको प्रिय लगती बहुत, वर्षा की बौछार।

मानव जीवन को सहज, संबल देता कर्म।
जान लीजिए है यही, गीता का शुभ सार।

जीवन में होता सदा, सबको प्रिय सम्मान।
पथ प्रशस्त करता मगर, अपना ही व्यवहार।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)

1 Like · 227 Views
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