कुमार विश्वास

कविता का पाठ सुनाता जब,
मीठी लय में कुछ गाता जब।
माहौल खुशनुमा हो जाता,
कवि मंच पर तू मुस्काता जब।
मुरझाए मुख पर आश ज्यों है,
ऐसा कुमार विश्वास क्यों है।
अनगिनत हुए हैं कलमकार,
सबने बरसाया अमिट प्यार।
विश्वास काव्य गढ़ता ऐसा,
साहित्य को मिलता महाकार।
अलंकारों में अनुप्रास त्यों है।
ऐसा कुमार विश्वास क्यों है।
कहीं जाना था कहीं चले गए,
किसी अपने से ही छले गए।
ले जाकर नभ पर बैठाया,
उन्हीं के हाथों से मले गए।
फिर भी तू नहीं निराश क्यों है,
ऐसा कुमार विश्वास क्यों है।
जो लिखा हो वैसा होता है,
कभी कर्मवीर कहाँ रोता है।
सदियों में कोई कवि किसान,
ऐसे स्वर व्यंजन बोता है।
सब लोगों में यूं खास क्यों है,
ऐसा कुमार विश्वास क्यों है।
सतीश शर्मा ‘सृजन’