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14 Nov 2024 · 1 min read

मनोभाव

मनोभाव

कुछ मनोभाव कलम के अंदर ही सूख जाते हैं,
जो निकलते हैं, वो तो बस कुछ ही होते हैं।

जो शब्दों में ढलते हैं, वो अधूरे ही रह जाते हैं,
बाकी दिल के अंदर कहीं खो ही जाते हैं।

टुकड़े-टुकड़े किश्तों में छलक-छलक कर,
सूखे कागज़ को भीगा कर निकलते हैं मनोभाव।

अनकहे जज़्बातों का दर्द है,
जो दिल में दब जाते हैं,
कलम की स्याही बेपरवाह हो कर,
खामोशी में ही खो जाते हैं।

Language: Hindi
7 Likes · 10 Comments · 84 Views
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