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21 Sep 2016 · 1 min read

कुंडलिया

“कुंडलिया”

ढोंगी करता ढोंग है, नाच जमूरे नाच
बांदरिया तेरी हुई, साँच न आए आंच
साँच न आए आंच, मुर्ख की चाह बावरी
हो जाते गुमराह, काटते शीश मदारी
कह गौतम चितलाय, पाक है पंडित पोंगी
अस्त्र शस्त्र पकड़ाय, आतंक परोषे ढोंगी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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