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21 Aug 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

बढ़ता दिखे गुनाह ये, बना जगत हित शूल।
एक बार की बात हो, तो भी जायें भूल।
तो भी जायें भूल, पिसे है इसमें नारी।
दुर्बल पाकर‌ गात, राक्षसों से वह हारी।
पापी करते घात, पाप नित जाता चढ़ता।
धरती रोती आज, देखकर इनको बढ़ता।।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

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