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1 Mar 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

देख चिता शमशान में, कहने लगा मलंग ।
लड़ते – लड़ते जिंदगी, आखिर हारी जंग ।
आखिर हारी जंग , समझ में जरा न आया ।
देह श्वास के तार , चलाती कैसे माया ।
कह ‘सरना’ कविराय,अजब है भाग्य के लेख।
डर जाता क्यों जीव , चिता को जलता देख ।

सुशील सरना /

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