**किताब**

*किताब*
कितना करते हैं संशोधन
करते है नई नई सोच…!
खूब करते है विचरण,
हो जाते है विषयो में तल्लीन..!
कहाँ कहाँ खोजते है ज्ञान,
खूब एकत्रित करते हैं साधन सामग्री..!
मंथन, चिंतन, समायोजन,
नियोजन, निष्कर्ष फिर… करते है लेखन…!
ऐसे ही नहीं उद्भव होता
निपुणता सभर ज्ञान..!
करनी पड़ती मेहनत समय के साथ चलके,
सकारात्मक, नकारात्मकता के
पहलुओ का रखना पड़ता ख्याल…!
उद्देश्य की सार्थकता का भी उसमे होता आविष्कार,
फिर… होता संग्रह हुए माहितीयो के
भंडार का संचार..!
तब जाके निर्माण होता ज्ञान का अखूट स्रोत…!
जिससे हम सब कहते है “किताब”…!!!!