काश अगर तुम हमें समझ पाते

कहाँ से शुरू, कहाँ पर खत्म
बिन सोचे यूँ ही बढ़े चले जाते
मंजिल की फ़िक्र फिर ना सताती
काश अगर तुम हमें समझ पाते
सुबह शाम नयन तुझे ही ताकें
कभी इस राह कभी उस राह झांके
बेचैनी में इस तरह ना घुटकर रह जाते
काश अगर तुम हमें समझ पाते
मैं भी तेरा, मेरा भी तेरा, तुम भी तेरा
मंजिल की उच्चाईया तुम्हारे हक में जाते
सबकुछ लुटाकर भी हम अधूरा ना होते
काश अगर तुम हमें समझ पाते
अश्क जो इन आँखों से बह जाती हैं
मुझको, मुझसे ही खाली कर जाती हैं
तेरी याद में इस तरह ना बिखर जाते
काश अगर तुम हमें समझ पाते
समंदर सी गहरी इन आँखों में
शायद तुम खुद को ही ढूंढ पाते
हमेशा से सिर्फ़ तुम्हारा किनारा था
काश अगर तुम हमें समझ पाते
बिछड़ना दस्तूर है जमाने का शायद
शायद की कभी हम मिले ना होते
समझ न पाता भले ये दुनिया
काश अगर तुम हमें समझ पाते