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11 Jan 2022 · 1 min read

कांच चुभाता दरिया

कितने पत्थर
मार रहा है
फिर भी
वह दर्पण नहीं टूट रहा
दूर से लग रहा एक दर्पण
पास जाकर देख ले
पारे का एक तपता हुआ
बहता हुआ
सब कुछ पिघलाता हुआ
एक पहाड़ी की कोख की आग से
फूटता कोई झरने सा
दिखता कांच चुभाता
दरिया न हो।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
Tag: कविता
189 Views
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