Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jun 2016 · 13 min read

कहानी अनन्त आकाश — कहानी संग्र्ह वीरबहुटी से

कहानी — लेखिका निर्मला कपिला

ये कहानी भी मेर पहले कहानी संग्रह् वीरबहुटी मे से है कई पत्रिकाओंओं मे छप चुकी है और आकाशवाणी जालन्धर पर भी मेरी आवाज मे प्रसारित हो चुकी है।

अनन्त आकाश– भाग- 1

मेरे देखते ही बना था ये घोंसला, मेरे आँगन मे आम के पेड पर—चिडिया कितनी खुश रहती थी और चिडा तो हर वक्त जैसी उस पर जाँनिस्सार हुया जाता था। कितना प्यार था दोनो मे! जब भी वो इक्कठे बैठते ,मै उन को गौर से देखती और उनकी चीँ चीँ से बात ,उनके जज़्बात समझने की कोशिश करती।–

“चीँ–चीँ चीँ—ाजी सुनते हो? खुश हो क्या?”

“चीँ चीँ चेँ– बहुत खुश देखो रानी अब हमारा गुलशन महकेगा जब हमारे नन्हें नन्हें बच्चे चहचहायेंगे।”” चिडा चिडिया की चोंच से चोंच मिला कर कहता ।

“चीँ चीँ चीँ– तब हमारे घर बहारें ही बहारें होंगी।” चिडिया उल्लास से भर जाती।

दोनो प्यार मे चहचहाते दूर गगन मे इक्कठे दाना चुगने के लिये उड जाते। फिर शाम गये अपने घोंसले मे लौट आते।मक़ि सुबह उठ कर जब बाहर आती हूँ दोनोउडने के लिये तैयार होते हैं ।उनको पता होता है कि मैं उन्हेंदाना डालूँगी ,शायद इसी इन्तज़ार मे बैठे रहते हों। इसके बाद मैं काम काज मे व्यस्त रहती और शाम को ज्क़ब चाय पी रही होती तो लौट आते।

बरसों पहले कुछ ऐसा ही था हमारा घर और हम।37 वर्ष पहले शादी हुयी ,फिर साल बाद ही भरा पूरा परिवार छोड कर हम शहर मे आ बसे। इस शहर मे इनकी नौकरी थी। घर सजा बना लिया। दो लोगों का काम ही कितना होता है। ये सुबह ड्यूटी पर चले जाते मै सारा दिन घर मे अकेली उदास परेशान हो जाती। 3-4 महीने बाद मुझे भी एक स्कूल मे नौकरी मिल गयी। फिर तो जैसे पलों को पँख लग गये—-समय का पता ही नही चलता। सुबह जाते हुये मुझे स्कूल छोड देते और लँच टाईम मे ले आते। बाकी समय घर के काम काज मे निकल जाता। रोज़ कहीँ न कहीं घूमने, कभी फिल्म देखने तो कभीबाजार तो कभी किसी दोस्त मित्र के घर चल जाते— चिडे चिडी की तरह बेपरवाह—-। अतीत के पन्नो मे खोई कब सो गयी पता ही नही चला

सुबह उठी तो देखा कि चिडिया दाना चुगने नही गयी चिडा भी आस पास ही फुदक रहा था। पास से ही कभी कोई दाना उठा कर लाता और उस की चोंच मे डाल देता। कुछ सोच कर मैं अन्दर गयी और काफी सारा बाजरा पेड के पास डाल दिया। तकि उन्हें दाना चुगने दूर न जाना पडे।उसके बाद मैं स्कूल चली गयीजब आयी तो देखा चिडिया अकेली वहीं घोंसले अन्दर बैठी थी।मुझे चिन्ता हुयी कि कहीं दोनो मे कुछ अनबन तो नही हो गयी? तभी चिडा आ गया और जब दोनो ने चोँच से चोँच मिलायी तो मुझे सकून हुया। देखा कि चिडा घोंसले के अन्दर जाने की कोशिश करता तो चिडिया उसे घुसने नही देती मगर वो फिर भी चिडिया के सामने बैठा कभी कभी उसे कुछ खिलाता रहता।मै उन दोनो की परेशानी समझ गयी चिडिया अपने अन्डौं को से रही थी दोनो अन्डों को ले कर चिन्तित थे। माँ का ये रूप पशु पक्षिओं मे भी इतना ममतामयी होता है देख कर मन भर आया।

कुछ दिन ऐसे ही निकल गयी मैं रोज बाजरा आदि छत पर डाल देती एक दोने मे पानी रख दिया था ताकि उन्हें दूर न जाना पडे।

उस दिन रात जल्दी नीँद नहीं आयी।सुबह समय पर आँख नहीं खुली, वैसे भी छुट्टी थी। चिडियों का चहचहाना सुन कर बाहर निकली तो देखा धूप निकल आयी थीपेड पर नज़र गयी तो वहाँ चिडियी के घोंसले मे छोटे छोटे बच्चे धीमे से चिं चिं कर रहे थी।चिडिया अन्दर ही उनके पास थी।चिडा बाहर डाल पर बैठ कर चिल्ला रहा था जैसे सब को बता रहा हो और् आस पास पक्षिओं को न्यौता दे रहा हो कि उसके घर बच्चे हुये हैं। मै झट से अन्दर गयी और घर मे पडे हुये लड्डू उठा लाई उनका चूरा कर छत पर डाल दिया–। इधर उधर से पक्षी आते अपना अपना राग सुनाते और लड्डूऔं खाते और चीँ चेँ करते उड जाते। आज आँगन मे कितनी रौनक थी— ।
इधर उधर से पक्षी आते और छत पर पडा लड्डूओं का चूरा खाते और उड जाते। आज चिडिया के बच्चों के जन्म के साथ आँगन मे कितनी रौनक आ गयी थी। ऐसी ही रौनक अपने घर मे भी थी जब मेरा बडा बेटा हुया था।

ऐसी ही रौनक अपने घर मे भी थी जब हमारे बडा बेटा हुया था। मेरी नौकरी के कारण मेरे सासू जी भी यहीं आ गये थे। स्कूल से आते ही बस व्यस्त हो जाती। हम उसे पा कर फूले नही समा रहे थे अभी से कई सपने उसके लिये देखने लगे थे। इसके बाद दूसरा बेटा और फिर एक बेटी हुयी। तीन बच्चे पालने मे कितने कष्ट उठाने पडे ,ये सोच कर ही अब आँखें भर आती कभी कोई बच्चा बीमार तो कभी कोई प्राबलेम । जब कभी सासू जी गाँव चली जाते तो कभी छुट्टियाँ ले कर तो कभी किसी काम वाले के जिम्मे छोड कर इन्हें जाना पडता । अभी बेटी 6 माह की हुयी थी कि सासू जी भी चल बसीं। बच्चों की खातिर मुझे नौकरी छोडनी पडी।उस दिन मुझे बहुत दुख हुया था। मेरी बचपन से ही इच्छा थी कि मै स्वावलम्बी बनूँगी– मगर हर इच्छा कहाँ पूरी होती है! इनका कहना था कि आदमी अपने परिवार के लिये इतने कष्ट उठाता है अगर अच्छी देख भाल के बिना बच्चे ही बिगड गये तो नौकरी का क्या फायदा । मुझे भी इनकी इस बात मे दम लगा। मगर बच्चे कहाँ समझते हैं माँ बाप की कुर्बानियाँ ।उन्हें लगता है कि ये माँ बाप का फर्ज़् है बस। मै नौकरों के भरोसे बच्चों को छोडना नही चाहती थी। हम जो आज़ाद पँछी की तरह हर वक्त उडान पर रहते अब बच्चों के कारण घर के हो कर रह गये।

बेटे के बेटा होने की खुशखबरी जब इन्हें सुनाई इनके चेहरे पर खुशी की एक किरण भी दिखाई नही दी— मैने बात आगे बढाने की कोशिश की—

:” देखिये बहु भी अभी बच्ची ही है वो अकेली कैसे बच्चे को सम्भालेगी? इस समय उन्हें हमारी जरूरत है हमे जाना चाहिये”। मैने डरते हुये इनसे कहा। मगर वही बात हुये इनको गुस्सा आ गया–

“हाँ आज उन्हें हमारी जरूरत है तो हम जायें मगर बहन की शादी पर हमे भी तो उसकी जरूरत थी तब क्यों नही आया था।”

तब उसे गये समय ही कितना हुया था हो सकता है कि उसके पास तब इतने पैसे ही न हों फिर उसने कहा भी था कि इतनी जल्दी मै नही आ सकता आप शादी की तारीख छ: आठ माह आगे कर लें मजबूरी थी उसकी।” मैने बेटे का पक्ष लेने की कोशिश की।

“देखो मै तुम्हें नही रोकता तुम्हें जाना है तो जाओ मगर मैं अभी नही जा सकता। तुम देख रही हो मै बीमार हूँ बी पी कितना बढ रहा है। फिर वहाँ कुछ हो गया तो उनके लिये मुसीबत हो जायेगी। मुझे फिर कभी कहना भी नही मैने मन को पक्का कर लिया है । उनके बिना भी जी लूँगा ।वो वहीं मौज करें।”

गुस्सा इनका भी सही था। मगर माँ का दिल अपनी जगह सही था। माँ भी किस तरह कई बार बाप और बच्चों के बीच किस को चुने वाली स्थिती मे आ जाती है

पति की बात जितनी सही लगती है बच्चों की नादानी उतनी ही छुपाने की कोशिश मे खुद पिस जाती है। भारतीय नारी के लिये पति के उसूल बच्चों की मोह ममता पर भारी पड जाते हैं। मै भी मन मसूस कर रह गयी । समझ गयी कि अब बेटा हाथ से गया। अगर अब हम चले जाते तो भविष्य मे आशा बची रहती कि वो कभी लौट आयेगा। अब शायद वो भी नाराज़ हो जाये।

मन आज कल उदास रहने लगा था। जब से रिटायर हुयी हूँ तब से तो बहुत अकेली सी पड गयी हूँ।पहले तो स्कूल मे फिर भी दिल लगा रहता था। चार लोगों मे उठना, बैठना, दुख सुख बँट जाते थे। अब घर मे अकेलापन सालता रहता है बच्चों की याद आती है छुप कर रो लेती हूँ। मगर ये जब से रिटायर हुये हैं इन्हों ने एक नियम सा बना लिया है– सुबह उठ कर सैर को जाना,नहा धो कर पूजा पाठ करना ,फिर नाश्ता कर के किसी गरीब बस्ती की ओर निकल जाना। वहाँ गरीब बच्चों को इक्ट्ठा कर के पढाना और सब की तकलीफें सुनना ,ागर किसी के काम आ सके तो आना।दोपहर को आराम करना फिर शाम को सैर,पूजा पाठ, खबरें सुनना खाना खा कर टहलना और सो जाना। मगर मै कुछ आलसी सी हो गयी थी। मै अभी अकेलेपन की ज़िन्दगी और बच्चों के मोह से अपने आप को एडजस्ट नही कर पा रही थी।—

” क्या बात है आज नाश्ता पानी मिलेगा कि नहीं।”इनकी आवाज़ सुन कर मै वर्तमान मे लौटी। पक्षी अभी भी चहचहा रहे थे।

नाश्ता बना कर इनके सामने रखा और खुद भी वहीं बैठ गयी।

“ापना नाश्ता नही लाई क्या आज नाश्ता नही करना है।”

“कर लूँगी, अभी भूख नही।”

ये कुछ देर सोचते रहे फिर बोले–

“राधा,तुम सारा दिन घर मे अकेली रहती हो– मेरे साथ चला करो। तुम्हारा समय भी पास हो जायेगा और लोक सेवा भी।”

” सोचूँगी— अपने बच्चों के लिये तो कुछ कर नही पाई, बेचारों को मेरी जरूरत थी। आखिर मे कन्धे पर तो वो ही उठा कर ले जायेंगे।” मन का आक्रोश फूटने को था।

मुझे किसी से उमीद नही जो देखना है जिन्दा रहते ही देख लिया मर कर कौन देखता है। बाके कन्धे की बात तो जब मर ही गये तो कोई भी उठाये नही उठायेंगे तो जब पडौसियों को दुर्गन्ध आयेगी तो अप-ाने आप उठायेंगे। मै इन बातों मे विश्वास नही करता।”

मेरी आँखें बरसने लगी और मै उठ कर अन्दर चली गयी। ये नाश्ता कर के अपने काम पर चले गये।”

रात को जब खाना खाने बैठे तो बोले—

“राधा ऐसा करो तुम बेटे के पास हो आओ मै टिकेट बुक करवा देता हूँ। तुम्हारा मन बहल जायेगा। मगर मैं नही जाऊँगा।” क्रमश:

बच्चे स्कूल जाने लगे ।छोटी बेटी भी जब पाँचवीं मे हो गयी तो लगा कि अब समय है बच्चे स्कूल चले जाते हैं और मै नौकरी कर सकती हूँ। वैसे भी तीन बच्चों के पढाई एक तन्ख्वाह मे क्या बनता है। भगवान की दया से एक अच्छी नौकरानी भी मिल गयी। मैने भाग दौड कर एक नौकरी ढूँढ ली। पता था कि मुश्किलें आयेंगी– घर परिवार– और– नौकरी — बहुत मुश्किल काम है। मगर मैने साहस नही छोडा बच्चों को अगर उच्चशिक्षा देनी है तो पैसा तो चाहिये ही था।

बच्चे पढ लिख गये बडा साफट वेयर इन्ज्नीयर बना और अमेरिका चला गया दूसरा भी स्टडी विज़ा पर आस्ट्रेलिया चला गया। बेटी की शादी कर दी।हम दोनो बच्चों के विदेश जाने के हक मे नही थे मगर ये विदेशी आँधी ऐसी चली है कि बच्चे पीछे मुड कर देखते ही नही जिसे देखो विदेश जाने की फिराक मे है। बच्चे एक पल भी नही सोचते कि बूढे माँ बाप कैसे अकेले रहेंगे– कौन उनकी देखभाल करेगा।कितना खुश रहते हम बच्चों को देख कर। घर मे चहल पहल रहती। कितना भी थकी होती मगर बच्चों के खान पान मे कभी कमी नहीं रहने देती। खुद हम दोनो चाहे अपना मन मार लें मगर बच्चों को उनके पसंद की चीज़ जरूर ले कर देनी होती थी। छोटे को विदेश भेजने पर इनको जो रिटायरमेन्ट के पैसे मिले थे लग गयी ।कुछ बेटी की शादी कर दी। घर बनाया तो लोन ले कर अब उसकी किश्त कटती थी ले दे कर बहुत मुश्किल से साधारण रोटी ही नसीब हो रही थी।

मगर बच्चों को इस बात की कोई चिन्ता नही थी।बच्चों के जाने से मन दुखी था। मुझे ये भी चिन्ता रहती कि वहाँ पता नही खाना भी अच्छा मिलता है या नही– कभी दुख सुख मे कौन है उनका वहाँ दिल भी लगता होगा कि नही। जब तक उनका फोन नही आता मुझे चैन नही पडती। हफते मे दो तीन बार फोन कर लेते।

बडे बेटे के जाने पर ये उससे नाराज़ थे। हमारी अक्सर इस बात पर बहस हो जाती। इनका मानना था कि बच्चे जब हमारा नही सोचते तो हम क्यों उनकी चिन्ता करें। जिन माँ बाप ने तन मन धन लगा कर बच्चों को इस मुकाम पर पहुँचाया है उनके लिये भी तो बच्चों का कुछ फर्ज़ बनता है। वैसे भी बच्चों को अपनी काबलीयत का लाभ अपने देश को देना चाहिये। मगर मेरा मानना था कि हमे बच्चों के पैरों की बेडियाँ नही बनना चाहिये। बडा बेटा कहता कि आप यहाँ आ जाओ — मगर ये नही माने— हम लोग वहाँ के माहौल मे नही एडजस्ट कर सकते।

बडे बेटे ने वहाँ एक लडकी पसंद कर ली और हमे कहा कि मै इसी से शादी करूँगा। आप लोग कुछ दिन के लिये ही सही यहाँ आ जाओ। मगर ये नही माने। उसे कह दिया कि जैसे तुम्हारी मर्जी हो कर लो। दोनो पिता पुत्र के बीच मेरी हालत खराब थी किसे क्या कहूँ? दोनो ही शायद अपनी अपनी जगह सही थे। उस दिन हमारी जम कर बहस हुयी।—

“मै कहती हूँ कि हमे जाना चाहिये। अब जमाना हमारे वाला नही रहा। बच्चे क्यों हाथ से जायें?”

” वैसे भी कौन सा अपने हाथ मे हैं– अगर होते तो लडकी पसंद करने से पहले कम से कम हमे

पूछते तो ?बस कह दिया कि मैने इसी से शादी करनी है आप आ जाओ। ये क्या बात हुयी?”

” देखो अब समय की नज़ाकत को समझो। जब हम अपने आप को नही बदल सकते , वहाँ एडजस्ट नही कर सकते तो बच्चों से क्या आपेक्षा कर सकते हैं फिर हमने अपनी तरह से जी लिया उन्हें उनकी मर्ज़ी से जीने दो। फिर हम भी तो माँ बाप को छोड कर इस शहर मे आये ही थे!”

” पर अपने देश मे तो थे।जब मर्जी हर एक के दुख दुख मे आ जा सकते थे। वहाँ न मर्जी से कहीं आ जा सकते हैं न ही वहाँ कोई अपना है।”

कई बार मुझे इनकी बातों मे दम लगता । हम बुज़ुर्गों का मन अपने घर के सिवा कहाँ लगता है? जो सुख छजू दे चौबारे वो न बल्ख न बुखारे। मै फिर उदास हो जाती । बात वहीं खत्म हो जाती।

एक दिन इन्हों ने बेटे से कह दिया कि हम लोग नही आ सकेंगे तुम्हें जैसे अच्छा लगता है कर लो हमे कोई एतराज़ नही। मै जानती थी कि ये बात इन्होंने दुखी मन से कही है।

बेटे ने वहीं शादी कर ली। और हमे कहा कि आपको एक बार तो यहाँ आना ही पडेगा। इन्हों ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं वहाँ तुम मेडिकल का खर्च भी नही उठा पाओगे, आयेंगे जब तबीयत ठीक होगी। बेटा चुप रह गया। मगर मै उदास रहती । एक माँ का दिल बच्चों के बिना कहाँ मानता है? छोटे को अभी दो तीन वर्ष और लगने थे पढाई मे उसका भी क्या भरोसा कि वो भी यहाँ वापिस आये या न।

एक साल और इसी तरह निकल गया। बेटे के बेटा हुया। उसका फोन आया तो मारे खुशी के मेरे आँसू निकल गये।उसने कहा कि माँ हमे जरूरत है आपकी आप कुछ दिन के लिये आ जाओ।

इन्हें खुशखबरी सुनाई मगर इन के चेहरे पर खुशी की एक किरण भी दिखाई नही दी।

“राधा ऐसा करो तुम बेटे के पास हो आओ मै टिकेट बुक करवा देता हूँ। तुम्हारा मन बहल जायेगा। मगर मैं नही जाऊँगा।”

” अकेली? मै आपके बिना क्यों जाऊँ? नही नहीं।”

“मै मन से कह रहा हूँ। गुस्सा नही हूँ। बस मेरा मोह टूट चुका है और तुम अभी मोह त्याग नही पा रही हो। जानता हूँ वहाँ विदेशी बहु के पास भी अधिक दिन टिक नही पाओगी।इस लिये नही चाहता था कि तुम जाओ।।”

“सोचूँगी।” कह कर मै काम मे लग गयी।

रात भर सोचती रही– इनकी बातें भी सही थी– फिर क्या करूँ यही सोचते नींद आ गयी। कुछ दिन इसी तरह निकल गये। मगर कुछ भी निर्णय नही ले पाई। कई बार इन्हों ने पूछा भी मगर चुप रही

उस दिन ये सुबह काम पर चले गये और मै चाय का कप ले कर बरामदे मै बैठ गयी। चिडिया के बच्चे अब चिडिया के बच्चे उडने लगे थे मगर दूर तक नही जाते। चिडिया उनके पास रहती और चिदा अकेला दाना चुगने जाता था। कितना खुश है ये परिवार फिर अपना ही क्यों बिखर गया। सोचते हुये आँख भर आयी।्रात को ये खाना खा रहे थे—

“देखो राधा मै मन से कह रहा हूँ तुम चली जाओ। मेरी चिन्ता मत करो। मै कोई न कोई इन्तजाम कर लूँगा। न हुया तो कुछ दिन की बात है मै़ ढाबे मे खा लूँगा। आज सोच कर मुझे बता देना कल टिकेट बुक करवा दूँगा।”

मै फिर कुछ न बोली। रात भर सोचती रही। सोच मे चिडिया का घोंसला आ जाता– चिडिया कैसे घोंसले के पास बैठी रहती— देखते देखते बच्चे फुदकने लगे हैं—चिडिया उन्हें चोंच मारना खाना और उडना सिखाती—-धीरे धीरे जब वो पँख फैलाते तो चिडिया खुश होती— हम भी ऐसे ही उनको बढते पढते देख कर खुश होते थे—– अब मुझे लगता कि चिडिया की खुशी मे एक पीडा भी थी– अब उडने लगे हैं — हमे छोड कर चले जायेंगे—–

आज वही पीडा सामने आ रही थी—

आज मैने देखा चिडा चिडिया और बच्चे इकट्ठे बैठे हुये हैं—-चोंच से चोंच मिला कर बात कर रहे हैं— “चीँ चेँ चीं” चिडिया चिडे की आवाज़ मे उदासी थी।

” चीं चेँ चेँ” मगर बच्चों की आवाज मे जोश था–और उसी जोश से वो उड गये दूर गगन मे—

“चाँ चाँ चाँ—– बच्चो हम इन्तजार करेंगे लौट आना।” चिडिया की आवाज़ रुँध गयी थी। दोनो उदास ,सारा दिन कुछ नही खाया।मौसम बदल गया था प्रवासी पक्षियों का आना भी सतलुज के किनारे होने लगा था। गोविन्द सागर झील के किनारों पर रोनक बढ गयी थी।

थोडी देर बाद चिडा चिडिया की चोंच से चोंच मिला कर चीँ चेँ चेँ कर रहा था—

“चीँ चीं चीं –रानी ऐसा कब तक चलेगा?बच्चे कब तक हमसे चिपके रहते? आखिर हम भी तो ऐसे ही उड आये थे। उनका अपना संसार है उन्हें भी हमारी तरह अपना घर बसाना है– जो सब के साथ होता है वही अपने साथ हुया है। चलो सतलुज के किनारे चलते हैं। दूर दूर से हमारे भाई बहिन आये हैं उनका दुख सुख सुनते है।।” चिडे ने प्यार से चिडीया के परों को चोंच से सहलाया और दोनो सागर किनारे उड गये।

हाँ ठीक ही बात है– सारा देश अपना है लोग अपने हैं बस सोच कर उन्हें प्यार से अपनाने की बात है—

मेरे भी आँसू निकल गये थे पोंछ् कर सोचा कि यही संसार का नियम है तो फिर क्यों इतना मोह? आखिर कब तक बच्चे हमारे पल्लू से बन्धे रहेगे। आज कल नौकरियाँ भी ऐसी हैं कहां कहाँ उनके साथ भागते फिरेंगे?। चिडे चिडिया ने जीवन का सच सिखा दिया था।मुझे भी रिटायरमेन्ट के बाद जीने का रास्ता मिल गया था।

सुबह जब नाश्ता कर के बस्ती मे जाने के लिये तैयार हुये तो मैं बोल पडी–

” मुझे भी अपने साथ ले चलें।”

“क्या सच?” इन्हें सहज ही विश्वास नहीं हुया। इनकी खुशी का ठिकाना नही था। इनकी आँखों मे संतोश की झलक देख कर खुशी से हुयी । बच्चों के मोह मे हम दोनो के बीच एक दूरी सी आ गयी थी — आज उस दूरी को पाट कर हम दोनो एक हो गये थे— मैं भी चिडिया की तरह उडी जा रही थी इनके साथ अनन्त आकाश की ओर—। समाप्त

Language: Hindi
1 Comment · 2852 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जमाना है
जमाना है
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
★
पूर्वार्थ
पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
Rituraj shivem verma
कर्क चतुर्थी
कर्क चतुर्थी
मधुसूदन गौतम
मैं पर्वत हूं, फिर से जीत......✍️💥
मैं पर्वत हूं, फिर से जीत......✍️💥
Shubham Pandey (S P)
हर घर तिरंगा
हर घर तिरंगा
Dr Archana Gupta
"दोस्त-दोस्ती और पल"
Lohit Tamta
*आज छपा जो समाचार वह, कल बासी हो जाता है (हिंदी गजल)*
*आज छपा जो समाचार वह, कल बासी हो जाता है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
ज़िंदगी के सौदागर
ज़िंदगी के सौदागर
Shyam Sundar Subramanian
सृजन
सृजन
Bodhisatva kastooriya
याद तो करती होगी
याद तो करती होगी
Shubham Anand Manmeet
*गणेश चतुर्थी*
*गणेश चतुर्थी*
Pushpraj Anant
"तेजाब"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रीतघोष है प्रीत का, धड़कन  में  नव  नाद ।
प्रीतघोष है प्रीत का, धड़कन में नव नाद ।
sushil sarna
.
.
*प्रणय*
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
मर्ज
मर्ज
AJAY AMITABH SUMAN
"विजयादशमी"
Shashi kala vyas
3313.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3313.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
— ये नेता हाथ क्यूं जोड़ते हैं ??–
— ये नेता हाथ क्यूं जोड़ते हैं ??–
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
मेरे दर तक तूफां को जो आना था।
मेरे दर तक तूफां को जो आना था।
Manisha Manjari
मेरा हाथ
मेरा हाथ
Dr.Priya Soni Khare
*पिता का प्यार*
*पिता का प्यार*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
" मेरा भरोसा है तूं "
Dr Meenu Poonia
तुझमे कुछ कर गुजरने का यहीं जूनून बरकरार देखना चाहता हूँ,
तुझमे कुछ कर गुजरने का यहीं जूनून बरकरार देखना चाहता हूँ,
Ravi Betulwala
करुण पुकार
करुण पुकार
Pushpa Tiwari
दुनिया के मशहूर उद्यमी
दुनिया के मशहूर उद्यमी
Chitra Bisht
नैया फसी मैया है बीच भवर
नैया फसी मैया है बीच भवर
Basant Bhagawan Roy
चाँद तो चाँद रहेगा
चाँद तो चाँद रहेगा
shabina. Naaz
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
Loading...