Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jan 2023 · 6 min read

कहमुकरी: एक दृष्टि

कहमुकरी लोक-काव्य की सर्वाधिक चर्चित और सुप्रसिद्ध विधाओं में से एक है । शायद ही कोई ऐसा हिंदी भाषा-भाषी व्यक्ति होगा जो इनके नाम से परिचित न हो। कहमुकरी विधा को हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठापित करने का श्रेय अमीर खुसरो को जाता है। जब भी कहमुकरी की बात होती है तो वह अमीर खुसरो के बिना पूरी नहीं होती। अमीर खुसरो के पश्चात कहमुकरी लेखन को गौरव प्रदान करने के लिए यदि किसी का नाम लिया जाता है तो वह है भारतेंदु हरिश्चंद्र का। कहमुकरी को ‘अमीर खुसरो की बेटी’ और ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रेमिका’ कहा जाता है। जहाँ अमीर खुसरो की मुकरियाँ लोकरंजक रूप में सामने आती हैं वहीं भारतेंदु हरिश्चंद्र की मुकरियाँ हास्य-व्यंग के साथ-साथ तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को भी सामने रखने का काम करती हैं। विधा कोई भी हो उसको सामाजिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश से जोड़ना साहित्यकार का काम होता है और यही उसकी नवीन उद्भावना मानी जाती है।
कहमुकरी का अर्थ: कहमुकरी का अर्थ है- कहकर मुकर जाना। कहमुकरी में दो सखियों के मध्य होने वाला हास-परिहासपूर्ण वार्तालाप होता है। एक सखी अपनी अंतरंग सखी से बातचीत के क्रम में अपने पति अथवा प्रेमी के विषय में जानकारी देती है फिर उसे ऐसा लगता है कि शायद यह उचित नहीं है और वह संकोचवश अथवा लज्जा के कारण अपनी बात को उलट देती है। कदाचित इसका कारण उसकी यह सोच है कि ऐसा करने से उसकी बात गुप्त बात सभी सखियों के मध्य फैल जाएगी और फिर सारी सखियाँ बात-बात पर उसे चिढ़ाएँगी, मजाक उड़ाएँगी और इसी डर से वह सही उत्तर नहीं देती, बात को घुमा देती है अर्थात साजन या प्रेमी से अलग बताए गए लक्षणों से मिलता-जुलता कोई अन्य उत्तर दे देती है। यहाँ यह प्रश्न भी विचारणीय है कि कह मुकरी में दो सखियों के मध्य वार्तालाप की बात ही क्यों की जाती है, दो पुरुषों की क्यों नहीं। इसका उत्तर ‘कहमुकरी’ शब्द में ही निहित है। विधा के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया गया है वह है कहमुकरी अर्थात कहकर मुकर गई । ‘मुकरी’ क्रिया स्त्रीलिंग है, पुल्लिंग नहीं। अगर दो पुरुषों के मध्य बातचीत होती तो ‘कहमुकरा’ शब्द का प्रयोग किया जाता जबकि ऐसा नहीं है अतः कहमुकरी शब्द दो सखियों के मध्य वार्तालाप को ही व्याख्यायित करता है।
कहमुकरी विधा में लेखन के लिए कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना चाहिए। कहमुकरी ने चार चरण होते हैं। इसके प्रथम तीन चरणों में एक सखी द्वारा दूसरी सखी से अपने साजन या प्रेमी की कुछ विशेषताएँ बताई जाती हैं और आखिरी चरण में दूसरी सखी उन विशेषताओं या लक्षणों के आधार पर जब पहली सखी (नायिका) से पूछती है कि क्या वह अपने साजन की बात कर रही है तो वह मना कर देती है और यहीं से कहमुकरी का जन्म होता है। आप जिस शब्द को आधार बनाकर कहमुकरी की रचना करना चाहते हैं उसके गुणों और विशेषताओं को पहले तीन चरणों में इस प्रकार पिरोए कि पढ़ने या सुनने वाले को ऐसा प्रतीत हो कि किसी पुरुष की बात हो रही है। यदि आरंभिक 3 चरणों में ऐसा नहीं होता है तो कहमुकरी प्रभावशाली नहीं बन पाती। प्रायः देखने में आता है कि कविगण अंतिम चरण के उत्तर विषयक शब्द से संबंध स्थापित नहीं कर पाते और लेखन प्रभावहीन हो जाता है। प्रत्येक कहमुकरी छेकापह्नुति अलंकार से युक्त होती है जिसमें प्रस्तुत को नकार कर प्रस्तुत को स्वीकृति प्रदान की जाती है।कहमुकरी में प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों का बिंब निर्माण आवश्यक होता है।
शिल्प एवं मात्रा विधान- कहमुकरी विधा का अवलोकन करने के पश्चात स्पष्ट होता है कि यह चौपाई छंदाधारित विधा है। कहमुकरी के भी चौपाई की भाँति चार चरण होते हैं।चरणांत में ऽऽ ( दो दीर्घ) ,।।।। ( चार लघु) ,ऽ।। ( एक दीर्घ और दो लघु), ।।ऽ ( दो लघु और एक दीर्घ) मात्रा भार प्रयोग होता है। कुछ स्थितियों में तृतीय और चतुर्थ चरण का मात्रा भार सोलह से कम या ज्यादा हो जाता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि चतुर्थ चरण के उत्तर अर्धांश में नायिका अपनी सखी को क्या उत्तर देने वाली है। यदि चतुर्थ चरण के अंत में नायिका उत्तर के रूप में ऐसे शब्द का प्रयोग करती है जिसका मात्रा भार दीर्घ लघु (ऽ।) या लघु दीर्घ (।ऽ) है तो तृतीय चरण के अंत में भी दीर्घ लघु (ऽ।) या लघु दीर्घ (।ऽ) वाले शब्द का प्रयोग आवश्यक हो जाता है और उस स्थिति में तृतीय और चतुर्थ चरण में 15-15 मात्रा भार हो जाता है। यदि तृतीय और चतुर्थ चरण में 15-15 मात्रा भार होता है तो यह आवश्यक नहीं होता है कि प्रथम और द्वितीय चरण में भी 15-15 मात्रा भार रखा जाए। चतुर्थ चरण दो भागों में विभक्त होता है- पूर्वार्द्ध में जब सखी नायिका से प्रश्न करती है- क्या सखि साजन? और उत्तरार्द्ध जिसमें नायिका, अपनी सखी को उत्तर देती है। प्रायः यह देखने में आता है कि पूर्वार्द्ध में तो मात्रा भार 8 होता है जबकि उत्तरार्द्ध में 8 या 7 मात्रा भार।

बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम! (अमीर खुसरो)

जब माँगू तब जल भरि लावै
मेरे मन की तपन बुझावै
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! ( अमीर खुसरो)

वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल! ( अमीर खुसरो)

रूप दिखावत सरबस लूटै,
फंदे में जो पड़ै न छूटै।
कपट कटारी जिय मैं हुलिस,
क्यों सखि साजन? नहिं सखि पुलिस। ( भारतेन्दु हरिश्चन्द्र)

नई- नई नित तान सुनावै,
अपने जाल मैं जगत फँसावै।
नित नित हमैं करै बल सून,
क्यों सखि साजन? नहिं कानून। ( भारतेन्दु हरिश्चन्द्र)

तीन बुलाए तेरह आवैं,
निज निज बिपता रोइ सुनावैं।
आँखौ फूटे भरा न पेट,
क्यों सखि साजन? नहिं ग्रैजुएट। (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र)

अमीर खुसरो की मुकरियों के उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि खुसरो ने संभवतः इसके लिए किसी निश्चित मात्रा भार का निर्धारण नहीं किया थ। क्योंकि उनकी मुकरियों में हमें भिन्न-भिन्न मात्रा मिलता है किंतु भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की मुकरियों में हमें मात्रिक संतुलन दिखता है और उन्हीं के आधार पर कहमुकरी के विषय में मात्रा भार निश्चित किया गया है। भारतेन्दु जी की मुकरियों पर दृष्टिपात करने से विदित होता है कि उनमें भी चार चरण हैं और प्रत्येक चरण में या तो 16-16 मात्रा भार है या फिर प्रथम और द्वितीय चरण में 16-16 और तृतीय तथा चतुर्थ चरण में 15-15 का मात्रा भार है। आज इसी मात्रा क्रम को आधार बनाकर ‘कहमुकरी’ की रचना की जा रही है।
कहमुकरी और पहेली- कतिपय विद्वान भ्रमवश ‘कहमुकरी’ और ‘पहेली’ को एक ही मान लेते हैं तो कुछ कहमुकरी को पहेली का मनोरंजक रूप मानते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि एक सहेली दूसरी सहेली से कोई पहेली बूझ रही है जबकि मुकरी से स्पष्ट है कि उसमें कोई प्रश्न नायिका द्वारा नहीं पूछा जाता ।उसकी सखी पहले 3 चरणों में वर्णित विशेषताओं या गुणों के आधार पर नायिका से प्रश्न करती है,जिसका उत्तर नायिका द्वारा ही उसी छंद में दिया जाता है। जबकि पहेली में बूझने वाले व्यक्ति को उत्तर ज्ञात न होने पर अलग से बताना होता है अमीर खुसरो ने पहेलियाँ भी लिखी हैं। दो पहेलियाँ उदाहरण स्वरूप अधोलिखित हैं-
एक गुनी ने यह गुन करना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल।
उत्तर: पान
एक थाल मोतियों से भरा,
सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे,
मोती उससे एक न गिरे।
उत्तर: आसमान
इन उदाहरणों से स्पष्ट है की कहमुकरी और पहेली को दो पृथक- पृथक विधाएँ हैं। कहमुकरी में पूछी गई बात का उत्तर चतुर्थ चरण में छंद का हिस्सा होता है जबकि पहेली में नहीं।अमीर खुसरो ने कहमुकरी और पहेली दोनों में रचना की है। दोनों पर दृष्टिपात करने से अंतर स्पष्ट हो जाता है।
-डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 6 Comments · 714 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सदा दूर रहो गम की परछाइयों से,
सदा दूर रहो गम की परछाइयों से,
Ranjeet kumar patre
नकाबे चेहरा वाली, पेश जो थी हमको सूरत
नकाबे चेहरा वाली, पेश जो थी हमको सूरत
gurudeenverma198
मैं एक पल हूँ
मैं एक पल हूँ
Swami Ganganiya
*श्रीराम और चंडी माँ की कथा*
*श्रीराम और चंडी माँ की कथा*
Kr. Praval Pratap Singh Rana
नौकरी
नौकरी
Aman Sinha
ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा...
ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा...
पंकज परिंदा
वक्त वक्त की बात है ,
वक्त वक्त की बात है ,
Yogendra Chaturwedi
Rap song 【4】 - पटना तुम घुमाया
Rap song 【4】 - पटना तुम घुमाया
Nishant prakhar
विजया दशमी की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 🎉🙏
विजया दशमी की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 🎉🙏
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
वीरों की धरती......
वीरों की धरती......
रेवा राम बांधे
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
* कष्ट में *
* कष्ट में *
surenderpal vaidya
■ आज तक की गणना के अनुसार।
■ आज तक की गणना के अनुसार।
*प्रणय प्रभात*
खोजें समस्याओं का समाधान
खोजें समस्याओं का समाधान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
पूर्वार्थ
"अपदस्थ"
Dr. Kishan tandon kranti
अरे रामलला दशरथ नंदन
अरे रामलला दशरथ नंदन
Neeraj Mishra " नीर "
जब गेंद बोलती है, धरती हिलती है, मोहम्मद शमी का जादू, बयां क
जब गेंद बोलती है, धरती हिलती है, मोहम्मद शमी का जादू, बयां क
Sahil Ahmad
विधा - गीत
विधा - गीत
Harminder Kaur
कविता
कविता
Rambali Mishra
*चुनाव: छह दोहे*
*चुनाव: छह दोहे*
Ravi Prakash
पृथ्वी दिवस
पृथ्वी दिवस
Bodhisatva kastooriya
सितारों की तरह चमकना है, तो सितारों की तरह जलना होगा।
सितारों की तरह चमकना है, तो सितारों की तरह जलना होगा।
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
मोहब्बत और मयकशी में
मोहब्बत और मयकशी में
शेखर सिंह
द्रौपदी की व्यथा
द्रौपदी की व्यथा
Shweta Soni
ऋतु शरद
ऋतु शरद
Sandeep Pande
मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
मोहब्बत की आख़िरी हद, न कोई जान पाया,
Rituraj shivem verma
ले कर मुझे
ले कर मुझे
हिमांशु Kulshrestha
ପ୍ରାୟଶ୍ଚିତ
ପ୍ରାୟଶ୍ଚିତ
Bidyadhar Mantry
2763. *पूर्णिका*
2763. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...