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3 May 2024 · 1 min read

कसौटी जिंदगी की

ध्वस्त हुए जीवन प्रतिमान
लगी किनारे बंदगी,
आता नही समझ मुझको
कैसी है कसौटी जिंदगी।

पूरित जीवन के जैसे
हो अभीष्ट सारे प्रतिफल,
संगीत समाहित जीवन में
जैसे नदियों की कल-कल।

लगता पाया हुआ बहुत
फिर क्या शेष बचा रखा है
जीना किसलिए और है क्यो
बचा और उद्देश्य है क्या ?

बचपन का उद्देश्य सभी
युवपन ने जैसे छीन लिया
जब तक चेता था निज धर्म
पूरी युवपन ही बीत गया।

अर्थहीन बन गया बुढापा
रहा नियति के था अधीन,
जीवन रेत से निकल गया
मिटा न चाह लिये आमीन।

एक चाह नहि पूरी होय
दूजी खड़ी सामने होय,
आज समझ आया है मुझको
कभी नही यह पूरी होय।

संजोया अतीत को मैंने था
बहुत दिनों तक जीवन मे,
ऊब एक दिन फेक दिया
था नवीन आस ले मधुबन में।

दुविधा में निर्मेष सदा
अग्नि समाहित उपवन है,
ले दे कर किसी तरह
बीत रहा यह जीवन है।

1 Like · 65 Views
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