कश्मीरी पंडित

मेरा दर्द न पूछाे मुझसे, मैं कश्मीरी पंडित हूँ,
शाेर वक़्त में जिन्दा हूं, चीत्काराें से मंडित हूँ।
अपने घर में मारा गया, टुकड़ो में मैं खंडित हूँ,
हमें बचाने न आए, क्यूंकि कश्मीरी पंडित हूं ?
मेरा दर्द न पूछो मुझसे, मैं अपने घर में दंडित हूं,
बेदर्द जमाने ने देखा, गिरिद्वार प्रवंचना खाया हूँ।
खामाेश खड़ी थी दुनियां, मैं अपनाें की लाशें पाया हूं,
मेरा दर्द न पूछाे मुझसे, क्यूंकि मैं कश्मीरी पंडित हूँ।।
याद है मुझको जुल्म पुराना, चुप–चाप खड़े थे लाेग,
लुट रही थी अस्मत सबकी, मरी थी माँ की काेख।
हमें बचाने काेई ना आया, खुद के वतन में दंडित हूँ,
मेरा दर्द न पूछाे मुझसे, क्यूंकि मैं कश्मीरी पंडित हूँ।।
सबने था अकेला छाेड़ दिया, मैं भी तो देश का हिस्सा हूँ,
भटक रहा था तन्हाई में, न भूला कोई मैं किस्सा हूँ।
जो छिनी विरासत दिलवाओ, मैं धाेखों से अभिसिंचित हूँ,
मेरा दर्द न पूछाे मुझसे क्यूंकि मैं कश्मीरी पंडित हूँ।।
वेदों की भाषा जाने हैं, सबको समान ही मानें हैं,
पंडितो पे बनते गाने हैं, सुनते सबके हम ताने हैं।
एक दिन हिंद लहराएगा, तुम कबतक हमको रोकोगे,
हमारी मजबूरी पर कबतक तुम, सियासी रोटियां सेंकोगे।।
अस्तित्व अगर पहचानाेगे तो दूर कुबुद्धि भागी है,
हम संयम के पालक हैं हमसे क्या बाकी है?
कर दाे मेरा सबकुछ संचय, मैं ईश्वर में आनंदित हूँ
मेरा दर्द न पूछाे मुझसे, क्यूंकि मैं कश्मीरी पंडित हूँ।।
©अभिषेक पाण्डेय ‘अभि’