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29 Jan 2024 · 1 min read

कवि मोशाय।

जहाँ न पहुँचे ओज रवि,पहुँचे कवि मोशाय।
मंच प्रपंच मलीन सब, रहे ठहाके लाय।।
रहे ठहाके लाय, छूटे हँसी फव्वारे।
गुँजित हैं धरा गगन, लोट पोट हुए सारे।।
जन में भरे उमंग,शेष परिवेश अब कहाँ।
भरदें हृदय नव रंग,हास्य कवि पहुँचे जहाँ।।
नीलम शर्मा ✍️

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